अवतार : भाग 6


मत्स्य अवतार

चाक्षुष मन्वंतर के बाद जल प्रलय हुई थी. पूरी धरती ही जल में डूब गई थी. तब प्रभु मछली के रूप में प्रकट हुए और सत्यव्रत राजा , वैवस्वत मनु, को बचाया. बाइबिल में वृत्तांत आता है कि इसी प्रकार  नोहा[Noaha ] और उसके परिवार को भी बचाया था. अपनी नाव पर नोहा ने   प्रभु के आदेश पर राजा सत्यव्रत की तरह ही  सब प्रकार के जंतुओं के एक-एक जोड़े और सारी  वनस्पतियों  के बीज  को रखा था जिस से आगे सृष्टि चली. सनातन धर्म के अनुसार भगवान ने सुक्ष्म शरीर रखवाए समस्त प्राणियों के. कुछ विद्वान  जिनमें श्रीधर स्वामी भी सम्मिलित हैं का मत है कि हर मन्वंतर के बाद जल प्रलय नहीं होता है केवल चाक्षुष मन्वंतर के बाद ही जल प्रलय हुई है. पर अन्य  विद्वान जैसे श्री जीव गोस्वामी और श्री विश्वनाथ चक्रवर्ती के मतानुसार हर मन्वंतर के  पश्चात जल प्रलय होती है.  इनके मत मार्कंडेय पुराण हरिवंश  आदि पर आधारित है.मत्स्य भगवान ने दिति  के पुत्र  हयग्रीव का भी वध किया .  जब ब्रह्मा जी अपने दिन के अंत में[ कल्प के अंत में यानी श्वेत वाराह कल्प जो कि वर्तमान कल्प है के पूर्व के कल्प के अंत में] सोने जा रहे थे तब श्रुतियां उनके मुख से निकल पड़ी जिसे हयग्रीव ने ग्रहण कर लिया.  वेदों का ज्ञान असुर के पास रहना उचित नहीं था,इसलिए भगवान को इसका वध  करना पड़ा. देवी भागवत के अनुसार, जो कि सारस्वत कल्प की है,  दिति-पुत्र हयग्रीव ने देवी से वर  लिया था कि हयग्रीव के अलावा उसे अन्य कोई नहीं मार सके. इस कारण से भगवान ने भी हयग्रीव का रूप लिया और हयग्रीव अवतार में हयग्रीव नामक असुर का वध किया. श्रीमदभागवत में ब्रह्मा जी कहते हैं कि  स्वर्ण कांति समान हयग्रीव के रूप में भगवान ने अवतार ग्रहण किया. भगवान का यह रूप वेदमय  यज्ञमय और सर्वदेवमय  है. इन्हीं की सांस से वेदवाणी उत्पन्न हुई है….2.7.11.हयग्रीव के रूप में प्रकट होकर प्रभु ने वेदों का उद्धार किया...11.4. 17

                                   हंस अवतार
 हंस के रूप में भगवान ने नारद जी को योग ज्ञान और आत्म तत्व को बताने वाला भागवत धर्म समझाया. यह वह धर्म है जो भगवान के शरणागत भक्तों को ही आसानी से प्राप्त होता है...2.7.19.

                               कच्छप अवतार
 प्रभु ने 11 वा  अवतार कछुए के रूप में लिया. इनकी पीठ को देवताओं ने और असुरों ने समुद्र को मथने के लिए उपयोग में लिया.  मथनी मंदराचल पर्वत को बनाया था. मथनी को रखने का आधार भगवान ने अपनी पीठ को बनाया तब जाकर मंथन हो सका. कुछ देर के लिए इन की पीठ की खुजली शांत हुई और यह सो सके--2.7.13 इस मंथन से अमृत, बहुत से  रतन, एरावत, लक्ष्मी आदि प्राप्त हुए. समुद्र को मथने का अर्थ विद्वान लोगों का सोचना है कि  उद्योग परिश्रम करके वस्तुएं प्राप्त करना . देवताओं ने प्रभु का आश्रय लिया था इसलिए उन्हें अमृत मिला, असुरो ने ऐसा नहीं किया इसलिए अमृत से वंचित रह गए. सबसे  बड़ी बुद्धिमानी की बात है भगवान की शरण में जाना.

                                   मनु
 हर मन्वंतर में एक मनु होता है. यह धरती पर शासन करते हैं. ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 मनु होते हैं. और ब्रह्मा जी के पूर्ण  जीवन काल में 504000 मनु होते हैं .यह अवतार भगवान की महिमा का प्रसार करने के लिए होते हैं. मनु अवतार मनु वंश की रक्षा के लिए होता है. भगवान मनु के रूप में दुष्ट राजाओं का दमन भी करते हैं.

                            भगवान का धनवंतरि अवतार
अमृत लेकर धनवंतरी ही समुद्र से प्रकट हुए, यह भगवान के अवतार हैं...अंशी के अंश. उनका शरीर बहुत ही सुंदर था उन्होंने तरह तरह के आभूषण पहन रखे थे. यही आयुर्वेद के प्रवर्तक माने जाते हैं. असुरो ने इनसे अमृत छीन लिया. देवता भगवान की शरण में गए तब भगवान को मोहिनी अवतार लेना पड़ा.


भगवान का मोहिनी रूप
 यह अवतार भगवान को अमृत के सही बटवारे के लिए लेना पड़ा. धनवंतरी महाराज से असुरो ने जबरन अमृत छीन लिया. देवता लोग भगवान की शरण में गए. भगवान चाहते थे कि देवताओं को  अमृत मिले इसलिए उन्होंने मोहिनी अवतार लिया. रूप इतना सुहावना था, सुंदर था, आकर्षण से भरा हुआ था कि  असुर इन पर मोहित हो गए. और इन्होंने असुरों  से वचन ले लिया कि यह जैसा उचित समझेंगे वैसा ही अमृत का बंटवारा करेंगे. इन्होंने असुरों को और देवताओं को अलग-अलग पंक्तियों में बैठाया. यह देवताओं का अमृत देने लगे, असुर  जान गए कि  वह  ठगे गए हैं गए हैं पर कुछ बोल ना सके. राहु देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत पी  गया, भगवान ने  उसका चक्र से सिर काटा ; परंतु  अमृत पीने से अमर होने के कारण वह मरा नहीं . इस  मोहिनी रूप को देखने की इच्छा शिवजी ने की तब भगवान ने पुनः  मोहिनी रूप धारण किया. शिवजी क्या देखते हैं कि सामने एक बड़ा सुंदर उपवन है इसमें भांति-भांति  के पेड़ लगे हुए हैं और रंग बिरंगे फूल हैं. एक बड़ी सुंदर स्त्री साड़ी पहने हुए गेंद उछाल-उछाल कर , लपक लपक कर पकड़ने की कोशिश कर रही है. इससे उस स्त्री के स्तन और हार हिल रहे हैं. कमर पतली है, नाजुक है ऐसा लग रहा है कि कहीं टूट ना जाए. वह ठुमक ठुमक कर चल रही है.  और खेलने के कारण कभी-कभी उसकी साड़ी सरक जाती है और बाल खुल जाते हैं. वह अपने बाएं हाथ से इन को संभाल रही है और दाहिने हाथ से उछाल उछाल कर गेंद से खेल रही है. उसने तिरछी नजर से शिव जी की ओर देखा. शिवजी अपनी सुध बुध खो बैठे. सुंदरी की साड़ी उड़ गई. भागवत में, 8.12 ,वर्णन है की मोहिनी का एक-एक अंग बड़ा ही रुचिकर और मनोरम था जहां आँख  लग जाती लगी रह जाती और मन भी वही रमण करने लगता. शंकर जी मोहिनी पर आसक्त  हो गए, और भवानी के सामने ही लज्जा  छोड़कर उसके पीछे चल पड़े. वस्त्रहीन मोहिनी के पीछे भागे, जैसे हाथी हथिनी के पीछे भागता है. दोनों भुजाओं में भरकर ह्रदय से लगा लिया. उसका आलिंगन किया. उसने  छुड़ाने की चेष्टा की लेकिन शंकरजी ने छोड़ा नहीं….. शिव जी का वीर्य स्खलित हो गया. इसके बाद शिव जी को स्मृति हुई और वह जान गए कि भगवान की माया ने ही उन्हें छकाया है. भगवान ने शिवजी को वरदान दिया, “मेरी यह गुण माया वैसे तो बड़े बड़ों को मोहित कर देती है फिर भी अब यह आपको कभी मोहित नहीं करेगी .”..( क्रमश:)

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