ब्रह्माजी को मोह हो गया ,मुँह की खानी पड़ी l संशय नहीं होना चाहिए था l अवतार हेतु प्रार्थना करने धरती व् देवताओं के साथ क्षीर सागर में यह भी तो थे और अवतार संबंधी आकाशवाणी इन्होने ही सुनी l शंकर आदि के साथ कंस के कारगृह में गर्भ-स्तुति भी की थी l ब्रह्माजी समस्त भौतिक सृष्टि के रचिता हैंl भगवान व उनके के अवतार भौतिक सृष्टि के परे हैं। यह ब्रम्हा जी की रचना में नहीं आते l इसलिए कृष्ण के संबंध में ब्रह्मा जी को भ्रम हो गया “क्या यह वास्तव में भगवान हैं?” स्वयं भगवान व भगवान के स्वांशों के अलावा ब्रह्माजी और ब्रम्हाजी की
सृष्टि के सभी प्राणी स्वाभाविक रूप से चार दोषों से ग्रसित होते हैं--- प्रमाद, भ्रम, विप्रलिप्सा तथा करणापाटव।या यूं कहें कि कृष्ण की माया से त्रस्त हैं --10/14/43-44 और भगवान की सहायता के बिना कोई इससे पार नहीं हो सकता --गीता 7 /14 l उनकी होने से माया उनके बराबर बल रखती है l परीक्षा हेतु ब्रह्माजी ने कुछ बालकों को और बछड़ों को चुरा कर छुपा दिया। कृष्ण ने ब्रह्मा जी द्वारा गायब किए हुए सभी बालकों और सभी बछड़ों का रूप धारण कर लिया। भगवान वैसे के वैसे बन गए जैसे कि यह बालक और बछड़े थे l अपने लोक से लौटने पर ब्रह्मा को पता नहीं चला कौन से असली हैं ,कौन से नकली ?जो वे देख रहे थे अपने सामने और जो चुराए थे एक से लग रहे थे l फिर उन्हें सब बछड़े और ग्वाल चतुर्भुज-रूप दिखेlसबके श्रीवत्स का चिन्ह था --10/13/48l विद्यवानों के अनुसार यह चिन्ह न तो पार्षदों के और ना ही सारूप्य मुक्ति पाने वाले जीवों के होता है, केवल भगवान के होता है l अस्तु सब भगवान ही थे l उन्होनें यह भी देखा कि उनके जैसे दूसरे ब्रह्मा ,अन्य ब्रह्माण्डों के,समस्त त्तत्व व सभी जीव कृष्ण की स्तुति कर रहे हैं l मोह टूटने पर , असलीयत जानने पर पूरे एक वर्ष में(जो उनके लोक की एक त्रुटि के बराबर था), ब्रह्मा ने बछड़े और बच्चे जो उनके पास थे वापिस किये l और फिर कृष्ण की स्तुति की --10/14/1-40 l
प्रभुता-मद इंद्र को भी हुआ था ,उसे भी मात खानी पड़ी,घमंड चूर-चूर क़र दियाकृष्ण ने lइंद्र के भेजे प्रलय कालीन संवर्तक मेघों से गोवर्धन उठाकर प्रभु ने व्रजवासियों की रक्षा की--10/25/25 l मायाबद्ध जीवों द्वारा अवतारों पर शक बार-बार किया जाता है l ईसा मसीह christ जब पुनः जीवित हो गए सूली पर चढ़ाए जाने के पश्चात तब उनके खास चेलों ने भी आसानी से नहीं माना l थॉमस Thomas ने कहा कि वह तब मानेगा जब अपनी ऊँगली से ईसा के घाव टटोल लेगा lसृष्टिकर्ता की करतूत का एक वर्ष तक किसी को भी कुछ मालूम नहीं पड़ा, यहां तक कि बलराम जी भी कुछ ना जान सके l इस प्रकार अनेक रूप बनाने से श्री कृष्ण की असाधारणता प्रतीत होती है l और इसका बलरामजी तक को ज्ञान ना होना भगवान की भगवत्ता बताता हैl अनेक लीला जैसे द्रौपदी का चीर बढ़ाना अंबर अवतार लेकर, सुदामा की निर्धनता दूर करके धन देना और कुब्जा की कूबड़ मिटाकर उसे पीन पयोधर वाली असाधारण सुंदरी बना देना भी असाधारण
कृत्य है; परंतु इससे भगवान होना साबित नहीं होता। बहुत से योगी इस प्रकार के कृत्य कर सकते हैंl ईसा मसीह ने कुछ रोटी के और मछली के टुकड़ों से बहुत बड़े समुदाय को भोजन
कराया है ,अंधे लूले लंगड़े मनुष्यों को ठीक किया हैl यहां तक तो ठीक है कि बहुत से योगी भी अनेक रूप धारण कर सकते हैं जैसा कि कर्दमजी का बहुत से रूप धारण कर लेना। परन्तु किसी को भी इसका पता नहीं चलना, यहां तक कि स्वयं के स्वांश बलराम जी को भी, कृष्ण की भगवत्ता का द्योतक हैl इसी कारण से अघासुर अजगर जो बकासुर और पूतना का छोटा भाई था का वध जो कृष्ण ने पांच वें वर्ष में किया था का पता छटवें वर्ष में लगा व्रज में जब ब्रह्मा द्वारा लौटाए गए असली ग्वालों ने बताया
: “आज नन्दनन्दन ने अजगर मार डाला ’’--10/14/48 l कृष्ण की माया के कारण चुराए गए बच्चों को एक साल के स्थान पर लगा एक क्षण बीता है,कृष्ण से पूँछा कि वह कहाँ थे और बोले : “हमने तुम्हारे बिना एक कौर भी नहीं खाया है।’’--10/14/45 l सृष्टि से पूर्व महाप्रलय के समय भी भगवान अकेले थे, उन्होंने संकल्प किया कि वह एक अनेक रूपों के हो जाएं, और इस संकल्प से समस्त सृष्टि हुई हैl बालकों के माता-पिता और बाछड़ों
की गायों ने उन्हें अपना ही समझा। क्योंकि वह कृष्ण
थे इसलिए उनका दुलार करने में आनंद अधिक आयाl ब्रह्माजी जी ने जो भगवान की स्तुति की है उससे श्रीकृष्ण का स्वयं भगवान होना स्पष्ट दिख रहा है l ब्रह्मा जी ने कहा,
“ एकमात्र आप ही स्तुति करने योग्य हैं…. आप की भक्ति सब प्रकार के कल्याण का स्त्रोत्र है , कोरा ज्ञान प्राप्त करना भूसी को कूटना है, इससे चावल नहीं मिलता--- मेरी कुटिलता तो देखिए मैंने अपनी माया फैलाकर आपका ऐश्वर्य देखना चाहा -- -गलती से मैं अपने आप को संसार का स्वामी मान बैठा था। --- मैं जीवन भर(ब्रह्मा जी का एक दिन हमारे 4 अरब 32 करोड़ वर्ष होता है, इतनी ही बड़ी उनकी रात होती है और इस अनुमान से उनकी आयु उनके सौ वर्ष के बराबर होती है) आपको नमस्कार ही करता रहूं।’’--10/14/1-40 l फिर वे अपने लोक चले गए l
कृष्णा ने दो बार अग्नि का पान किया, एक बार सबके सामने और एक बार आंखें बंद करवा कर---10 /17 /25 ,10 /19/ 11 -14 .l अगस्त्य ने भी
समुद्र का पान कर के समुद्र को सुखा दिया थाl परंतु दोनों में फर्क है l कृष्ण में तो शक्तियां- सिद्धियां स्वाभाविक रूप से हैऔर अगस्त्य उन मनुष्यों में आते हैं जिन्हें कृष्ण कृपा करके सिद्धियों का कुछ अंश दे देते हैं.--- 11 /15 /3 -5 ,श्रीमद्भगवद्गीता 10 / 41 .
इनके पैदा होते ही जेल के ताले खुल गए, कुछ दिनों की आयु में ही पूतना को मार दिया, छकड़े को लात देकर तोड़ दिया जिससे शकटासुर का उद्धार किया, घुटनों के बल जब चलने लगे तब अर्जुन के दो
बड़े बड़े पेड़ तोड़ डाले और नलकूबर व मणिग्रीव
का उद्धार किया, कंस के अखाड़े में मुष्टिका प्रहार, लात घूसों से शक्तिशाली पहलवान और शक्तिशाली हाथी को मार डाला, नागजीति के स्वयंवर में सात सांडों को एक साथ नथ दिया, एक ही
हाथ
पर गोवर्धन धारण किया और भी ऐसी लीलाएं कीं जहां श्री कृष्ण का असाधारण बल प्रकट होता है l
भगवान ने युक्ति पूर्वक भी बहुत से असुरों का संहार करवाया। ऐसा महाभारत के युद्ध में, जरासंध के साथ भगवान के युद्ध में तथा अन्य युद्धों में भगवान ने किया।
कंस, शिशुपाल, नकली वासुदेव आदि बहुत से शक्तिशाली राजाओं को समाप्त किया।
लीला समेटते समय सारे यदुकुल का संहार करवा दिया आपस में लड़वाकर l
भगवान ने और भी असाधारण कार्य किए हैं परन्तु भगवान ने लीला के समय जो करुणा दिखाई है उस पर विशेष गौर करना हैl पूतना नन्हे बालक कृष्ण को मारने के उद्देश्य से आई थीl भगवान ने क्या किया? उसे गोलोक दे दिया,जो गति धाय को देनी थी वह उसे दे दी l धाय भी सात माताओं में से एक मानी गई है, अन्य मांऐं जन्म देने वाली, गुरु पत्नी, राजा की पत्नी,ब्राह्मण की पत्नी,गाय और धरती हैं l एक कथा इस प्रकार है कि शुकदेवजी पैदा होते ही संसार छोड़ कर जंगल की ओर चल दिए l उन के
पिता व्यास जी पीछे पीछे दौड़े उन्हें वापस लाने के लिए ,परंतु वह नहीं आए l शुकदेवजी एक पत्थर पर बैठ गए जड़वत । वह समाधि में थे,द्वैत का कोई भान नहीं था l व्यास जी के कहने पर उनके कुछ शिष्य वहां पर बैठ गए और भागवत सुनाने लगेl जब पूतना का प्रसंग आया, तब बालक सुखदेव जी की समाधि टूट गई l ऐसे करुणा मय के संबंध में जानने की जिज्ञासा लेकर वह अपने पिता के पास गए। व्यास जी ने उन्हें भागवत पढ़ाई।सुखदेव जी स्वयं ने राजा परीक्षित से कहा है: “ मेरी निर्गुण स्वरुप परमात्मा में पूरी निष्ठा हैl फिर भी भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं ने बलपूर्वक मेरे हृदय को अपनी ओर आकर्षित कर लिया l यही कारण है कि मैंने इस पुराण का अध्ययन किया l ’’....2/1/9. ऐसे निर्गुण उपासक शुकदेवजी कथा सुनाते -सुनाते भी समाधि में चले जाते हैं ,ऐसा है कृष्ण-चरित्र --10/12/44 l भगवान के इसी गुण का हमें फायदा उठाना है l उनकी शरण में जाकर आवागमन से छूटना है l...(क्रमशः)
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