अवतार : भाग 8


 भगवान परशुराम...  स्कंध 9  अध्याय 15 और 16
परशुराम जी ऋषि जम्दग्नि के  पुत्र हैं .माता का नाम रेणुका है .अपने पिता के साथ यह आश्रम में रहते थे. उनके पिता के पास कामधेनु नामक गाय थी. एक बार राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन आश्रम पर अपनी सेना सहित आया. कामधेनु से संपन्न ऋषि ने राजा का स्वागत किया, उसे उसकी सेना को  अच्छा भोजन कराया . 

 कामधेनु के कारण ऋषि का’ “वैभव’’ देख  राजा की नियत बिगड़ गई .सहस्त्रबाहु अर्जुन ऋषि जमदग्नि की गाय कामधेनु को  बलपूर्वक ले गया.इस समय परशुराम जी आश्रम पर नहीं थे.लौटने पर उन्हें सब बातों का पता लगा. ऋषि पुत्र परशुराम जी ने राजा के अन्याय को सहन नहीं किया.परशुराम जी उसकी राजधानी की ओर चल दिए.सहस्त्रबाहु अर्जुन को जब इसका पता लगा तो उसने परशुराम जी को रोकने के लिए 17अक्षौहिणी सेना भेजी(21870 रथ, इतने ही हाथी,109350 पैदल और 65610 घोड़े एक अक्षौहिणी सेना में होते थे) . उन्होंने समस्त सेना का अपने फरसे और बाणों से वध कर दिया, टुकड़े-टुकड़े कर दिया . और सहस्त्र अर्जुन का युद्ध में वध कर दिया . यह वही राजा था जिसने एक बार  अपनी बाहों से नदी का वेग रोककर उल्टा कर दिया था और जिस कारण रावण के खेमे में बाढ़ गई थी. इस ने  रावण को भी बंदी बना लिया था. ऐसे राजा का वध करना परशुराम जी के लिए एक  खेल ही था. गाय को ले आए.डर के मारे राजा के पुत्र भाग गए. परशुराम जी के पिता इन पर नाराज हुए,समझाया कि सम्राट का वध ब्राहमण की हत्या से भी ज्यादा अधिक पापमय है. प्रायश्चित करने के लिए तीर्थाटन के लिए भेज दिया .
परशुराम जी ने 21 बार धरती को क्षत्रिय विहीन किया.
एक बार इनकी माता रेणुका ने अप्सराओं को और गंधर्व के राजा को नदी के जल में क्रीड़ा करते हुए देखा . मोहित होने की वजह से इनको भी जल में रमण करने की इच्छा हुई. इस पर परुशराम जी के पिता अपनी पत्नी पर नाराज हो गए और अपने पुत्रों  को(परशुराम जी के अलावा) अपनी पत्नी   उनकी माता का वध करने के लिए आज्ञा दी. इनके पुत्रों ने मातृप्रेम के कारण इनका प्रभाव नहीं जानने के कारण इनकी आज्ञा का पालन नहीं किया.  फिर पिता ने परशुराम जी को अपने भाइयों और माता का वध करने की आज्ञा थी. अपने पिता की आज्ञा पर इन्होंने अपनी मां रेणुका अपने सभी भाइयों  का वध कर दिया.  परशुराम जी को अपने पिता की शक्तियों का ज्ञान था. उन्होंने सोचा, “यदि पिता की आज्ञा नहीं मानी तो पिता क्रोधित हो जाएंगे.  यदि आज्ञा मांग ली तो पिता प्रसन्न हो जाएंगे और मां को और भाइयों को मेरी प्रार्थना पर जीवित कर देँगे  . ’’  बाद में इनकी प्रार्थना पर इनके पिता ने इनकी माता को वह भाइयों को जीवित कर दिया.पूर्व काल में बहुत से ऋषियों में इस प्रकार की शक्तियां हुआ करती थी. यज्ञ के पश्चात  यज्ञ -पशु को अग्नि में समर्पित करने के पश्चात  जीवित किया जाता था. इसी को यज्ञ की सफलता माना जाता था. यदि पशु  जीवित हो जाता था तब ही माना जाता था  थी कि यज्ञ  पूर्ण हुआ है. इस प्रकार वास्तव में पशु बलि में कोई हिंसा नहीं थी. ऐसा विशेष ज्ञान इस युग में प्रायः  समाप्त ही हो चुका है.
जब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने इनके पिता  जमदग्नि को मार दिया तब इन्होंने उसके पुत्रों को मार डाला और पुत्रों के शरीर से टुकड़े-टुकड़े किए सिरों का एक पर्वत बना दिया .  उनके रक्त से एक नदी तैयार की.जो राजा  ब्राह्मण संस्कृति का आदर  नहीं करते थे वह इनसे भयभीत हो गए. 21 बार ब्राह्मणों का सम्मान नहीं करने वाले और उनसे बैर रखने वाले क्षत्रियों का पृथ्वी से सफाया किया .  अपने पिता को  यज्ञ करके पुनर्जीवित किया .  इनके पिता ने पुरानी स्मृति के साथ पुनः  जीवन प्राप्त किया.  जमदग्नि सातवें सप्त ऋषि हैं.
  ऋषि गण  बार-बार क्षत्रियों की रक्षा करते; परंतु परशुराम जी उनका  का वध कर डालते थे. महर्षि कश्यप ने इन्हें  आदेश दिया कि यह महेंद्र पर्वत क्षेत्र पर जाकर निवास करें.परशुराम जी ने इस आज्ञा का पालन किया और  अभी परशुराम जी वहीं रहते हैं. और पूरे  कल्प तक रहेंगे.अगले मन्वंतर में अर्थात , आठवें सावर्णि मन्वंतर में, परशुराम जी ज्ञान के संस्थापक होंगे.  और यह सप्तर्षियों में से एक बनेंगे .

 राम जी ने जब शिवजी का धनुष तोड़ा था राजा  जनक के यहां सीता स्वयंवर के समय, तब  परशुराम जी वहां पहुंच गए थे. इस प्रकार राम और परशुराम एक ही समय में दो अवतार थे. ऊपर हम देखते हैं कि  कच्छप और मोहिनी अवतार भी साथ-साथ थे. एक ही समय में एक से ज्यादा अवतार भी रह सकते हैं. जिस अवतार को जो कार्य करना होता है वह कार्य  वही अवतार करता है, दूसरा नहीं.
श्री हरि का यह अवतार परशुराम रूप में,ब्रह्मणों के  भृगुवंश में हुआ था. इन्होंने क्षत्रियों का वध करके प्रथ्वी को क्षत्रियों के भार से उबारा था. अवतार में इन्होंने ज्ञान नहीं बांटा।  यह कार्य परशुराम जी अगले मन्वंतर में करेंगे। जैसा  ऊपर बताया जा चुका है परशुराम जी अभी धरती पर ही हैं और अधिकारियों को दर्शन भी देते हैं.
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                                                      वेदव्यास
 इस अवतार में भगवान ने हिंदू संस्कृति की रक्षा के लिए पाराशर ऋषि द्वारा सत्यवती के  गर्भ  से जन्म लिया .कथा यूं है कि सत्यवती, मत्स्य कन्या(इनका जन्म राजा  परिचर के वीर्य  को मछली, जो कि वास्तव में अप्सरा आद्री थी,द्वारा धारण करने से हुआ था. यह मछुआरे द्वारा पाली गई थीं  और इनके शरीर से मछली जैसी दुर्गंध आती थी), पाराशर जी को नाव में पार पहुंचा रही थी. पाराशर जी काम के वशीभूत हो गए. वैसे तो वह जितेंद्रीय थे, परंतु भगवान की योजना उनसे कोई बड़ा कार्य करवाने की थी, इसीलिए वह मत्स्यकन्या की ओर आकर्षित हुए. मत्स्य कन्या जिस में मछली की दुर्गंध आती थी को  उन्होंने कस्तूरी की गंध प्रदान की,मछली की दुर्गंध समाप्त की, वरदान दिया कि वह दूषित नहीं होगी,उसके पिता को पता नहीं चलेगा,चिरयौवना रहेगी,अद्भुत शक्तिशाली पुत्र पैदा होगा और कोहरे की आड़ में समागम किया;किनारे पर से कोई देख नहीं सका. एक द्वीप में  सत्यवती ने वेद व्यास जी को जन्म दिया,जिस कारण से इनका एक नाम द्वीपायन  भी हुआ।  जन्मते ही बड़े हो गए और माता की आज्ञा लेकर चले गए, यह वचन देकर कि जब माता  याद करेगी तब वह जाएंगे. बाद में हुआ भी ऐसा ही सत्यवति  के स्मरण करने पर गए और धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर जी को उत्पन्न किया.

 इन्होंने वेदों का चार भागों में विभाजन किया, जो कि पहले एक ही था.ऋषि अंगिरा ने सरल तथा भौतिक उपयोग के छंदों को संग्रहित किया जो अथर्वेद कहलाया ; भगवान व्यास जी ने मंत्रों, गद्य भाग और  ऋचाओ  को अलग-अलग संकलित किया. यह ऋग्वेद सामवेद और यजुर्वेद ,  जैसे कि  वर्तमान में हमें मिलते हैं, कहलाए. इसी कारण से इनका एक नाम वेद व्यास हुआ जो सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैअन्य  नामों की अपेक्षा.  शूद्र ,स्त्री और पतित द्विज  को  वेद पढ़ने का अधिकार नहीं था, उनके भले के लिए इन्होंने महाभारत की रचना की. पुराणों की रचना भी इन्होंने ही की है.  इनके प्रयासों से वेद का अर्थ सबके लिए समझना संभव हो गया. वर्तमान में हिंदू संस्कृति का जो रुप है उसको वेदव्यास जी ने ही सजाया है. यह इस पूरे कल्प  तक रहेंगे और आज भी  है, अधिकारी लोगों को दर्शन भी देते हैं. आदि शंकराचार्य को इन्होंने दर्शन दिए थे.  बद्रीनाथ धाम में ही रहते हैं. परंतु पूरी धरती पर घूमते रहते हैं.
भागवत के अनुसार इस अवतार को भगवान का कला अवतार माना जाता है...1.5.21. यह  अवतार,देवी भागवत के अनुसार, हर द्वापर युग में होता है. युग चार होते हैं सत्य ,त्रेता  द्वापर और कलियुग  . वर्तमान में 28वां कलि  युग चल रहा है, और वैवस्त  मन्वंतर है .इससे पूर्व जो युग था वह द्वापर युग था और उस द्वापर युग में वर्तमान व्यास जी ने अवतार लिया .अगले द्वापर में अर्थात 29 द्वापर में व्यास होंगे द्रोणी.प्रथम द्वापर युग में वेदों का विभाजन स्वयं ब्रह्मा जी ने किया था ,प्रथम द्वापर युग के व्यास हुए ब्रह्माजी.दूसरे द्वापर में व्यास का कार्य प्रजापति द्वारा संपन्न किया गया, दूसरे व्यास प्रजापति को माना जाता है. तीसरे में उशना ,चौथे में वृहस्पति, पांचवें में सविता, छठे में मृत्यु देव, सातवें द्वापर में मंगवाने,आठवे में  वशिष्ट जी, नोवे सारस्वत, दसवें त्रिधामाने,  ग्यारहवें  त्रिवृषणे , बारहवें भारद्वाज ,तेरहवें  अंतरिक्ष, चौदह वें धर्म, पन्द्रह  में त्रयारुणि, सोलवे  धनंजय ,सत्रहवें मेधातिथि ,अठारह वे व्रति, उन्नीस वें अत्री, बीसवें  गौतम, इक्कीस वें हरयआत्माउत्तम; बाकी के व्यास वाजश्रवावेन, अमुष्यायण,सोम , तृणबिंदु, भार्गव, शक्तिजातकनर्य  और कृष्णद्वैपायन(वर्तमान व्यास) हुए हैं. 

                                         बुद्ध अवतार
भगवान यह अवतार तब लेते हैं जब भौतिकवाद अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है.इस अवतार में एक ऐसे धर्म का उपदेश देते हैं जो सामान बुद्धि से समझ में सके. मूलभूत उपदेश बुद्ध अवतार में अहिंसा का होता है. इतिहास के बुद्ध  और भगवान के अवतार बुद्ध अलग-अलग है. जीव गोस्वामी जी के अनुसार 2.7. 37 में  जिस अवतार का वर्णन आता है वह वर्तमान कलियुग का नहीं है किसी अन्य कलि युग में हुआ था.


कल्कि अवतार
 जब घोर कलयुग आएगा. ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य पाखंडी हो जाएंगे शूद्र राजा हो जाएंगे, तब कलयुग का शासन करने भगवान कल्कि अवतार लेंगे.यह संभल में पैदा होंगे विष्णु यश ब्राह्मण के यहां. कल्कि भगवान को वेदों का उपदेश भगवान परशुराम देंगे. शिव उन्हें शस्त्रों की शिक्षा देंगे.दुष्टों का संहार करेंगे. यह सतयुग लाएंगे दोबारा …(क्रमश:)
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