ज्योतिष विज्ञान-2 : शिक्षा

ज्योतिष और शिक्षा
लेखक :
वात्स्यायन शर्मा
मेयो कॉलेज, अजमेर
"संसार का नियम है- विनम्रता आदमी को बड़ा बना देती है; सन्देह आत्मविश्वास को डिगा देता है और अहंकार उसे नष्ट कर देता है। किसी भी आचार्य के पास जाएँ तो पूरी श्रद्धा और विश्वास से जाएँ ताकि वह आपके जीवन की फाइल को सही रूप में व्यवस्थित कर सके।"

ज्योतिष शास्त्र जातक की शिक्षा के स्तर व स्थिति के बारे में क्या सही जानकारी दे सकता है ?- यह प्रश्र बहुधा पूछा जाता है। आमतौर पर जनसामान्य के समक्ष दुविधा प्रकट होती है जब वे अपनी संतान को ऐसी शिक्षा दिए जाने के बारे में विचार करते हैं जो जातक के जीवन को बेहतर बनाने में सहयोग करे। इस क्षेत्र के बारे में चर्चा करने से पूर्व बताना चाहूँगा कि शिक्षा के क्षेत्र में यह देखना कि जातक का बुद्धि स्तर कैसा है; उसकी तार्किक सामर्थ्य कैसी है; उसकी समझ कैसी है; उसके विचार कैसे हैं; उसकी विचाराभिव्यक्ति कैसी है; उसकी निर्णय क्षमता कैसी है; उसकी प्रशासनिक दक्षता किस स्तर तक जा सकती है; उसका वातावरण के अनुकूल ढलना कैसा है? आदि अनेक प्रश्र हैं जिनकी सही जानकारी होने पर जातक के द्वारा चयनित शिक्षा उसके जीवन में बेहतरी के लिए कितनी सहायक होगी इस तथ्य का आकलन सहज ही किया जा सकता है। पर क्या सामान्यजन इन बातों का विचार कर संतान के जीवन की फाइल को व्यवस्थित कर सकता है? यह उसके लिए बहुत कठिन कार्य है परन्तु ज्योतिष के माध्यम से इसे सरलता से किया जा सकता है।

जीवन में प्रारम्भिक शिक्षा से अंत तक क्रमश: माध्यमिक, उच्च माध्यमिक, स्नातक, स्नातकोत्तर, एम फिल, पी एच डी, डिप्लोमा आदि अनेक रूप एवं पड़ाव देखने को मिलते हैं। उच्च शिक्षा और उससे संबंधित विषयों के चयन की बात मनुष्य के जीवन का अहम् पड़ाव है। वहाँ जातक और उसके माता-पिता ऐसे दो-राह पर खड़े हो जाते हैं कि क्या करें यह समझ में नहीं आता है। ऐसे में ज्योतिर्विद से सलाह अवश्य करनी चाहिए। ऐसा करने से बहुत-सी अनचाही समस्याओं से छुटकारा तो मिलेगा ही जीवन की फाइल को भी व्यवस्थित किया जा सकेगा।

ग्रहों का प्रभाव

किसी ग्रह का प्रभाव उसके गुरुत्वाकर्षण और उसके धरती तक पहुँचनेवाली किरणों से जुड़ा हुआ है। हमारे पूर्वज मनीषियों ने इसे भली-भाँति जान लिया था। किस ग्रह, किस राशि के साथ किस समय पैदा हुआ जातक किस प्रकार की योग्यता रखता है। इसका सूक्ष्म ज्ञान ज्योतिष में समाहित है। प्रसंग 1994 के आस-पास का है। उस समय ज्योतिष के रहस्यों को समझने का प्रयल कर रहा था। हॉस्टल के दो छात्र मुझसे मिलने आए और पूछा - 'कल हमारा रसायन विज्ञान का बोर्ड प्रेक्टीकल है। जानना चाहते हैं कि कल हमें कौन-सा पदार्थ मिलेगा ताकि हम उसकी विशेष तैयारी करें।' निश्चय ही पारम्परिक प्रश्रों से हटकर एक चुनौतीपूर्ण प्रश्र मेरे सामने था। तात्कालिक प्रश्रकुंडली बनाकर, लग्र और ग्रहों के प्रभाव का अध्ययन करते हुए कुछ पदार्थों के नाम बताए। जानकारी थी कि प्रायोगिक परीक्षा में तो एक ही पदार्थ मिलेगा। कुछ गणनाएँ की और दो पदार्थ के निष्कर्ष पर पहुँचकर दो पदार्थों की तैयार करने के लिए कहा। मेरे लिए उस समय आश्चर्य का विषय था कि उन दोनों को उनमें से एक-एक पदार्थ मिला और वह अपनी प्रायोगिक परीक्षा को बहुत अच्छे से कर सके। इससे भी बहुत चौंकानेवाले तथ्य से साक्षात्कार इस प्रसंग से बहुत पूर्व का है। एम ए की परीक्षा के प्रत्येक पेपर में तीन खंड हुआ करते थे। प्रत्येक खंड में से एक-एक प्रश्र करना अनिवार्य हुआ करता था और कुल नौ प्रश्रों में से पाँच प्रश्रों के उत्तर देने होते थे। उस समय ज्योतिष के क्षेत्र में मेरा इतना ज्ञानार्जन नहीं हुआ। किसी भी विषय का अध्ययन विस्तार से करना अच्छा लगता है इसलिए उस समय भी वन वीक और गाइड पढ़कर समझ में नहीं आता था। रटने की आदत कभी नहीं रही। उस समय एम ए के पेपर्स के लिए गिनकर पाँच प्रश्र लिखकर विशेष रूप से तैयार करता था। सिर्फ पाश्चात्य साहित्य से जुड़ा पेपर ऐसा था जिसमें सात प्रश्र लिखकर विशेष रूप से तैयार किए थे। आश्चर्य यह है कि प्रत्येक पेपर में वे ही पाँच प्रश्र मिलें और पाश्चात्य साहित्य के लिए जो सात प्रश्न तैयार किए थे, वही सात प्रश्र मिले।

जीवन में ऐसी बहुत-सी घटनाएँ घटी जिनके साक्षी लोग बने हैं और मेरे हदय में प्राचीन मनीषियों और उनके द्वारा दिए गए इस शास्त्र के प्रति श्रद्धा बढ़ी है। यह वस्तुत: परमात्मा की कृपा ही है जिसे विभिन्न अवसरों पर विभिन्न माध्यमों से प्राप्त किया है।

वर्तमान शिक्षा और ग्रहों का योगदान

यदि ऐसा समझा जाए कि एक ग्रह ही शिक्षा की स्थिति और उससे जुड़े रहस्यों को अनावृत करने के लिए पर्यात होता है तो यह गलत होगा। इसके लिए ग्रहों के अलावा राशियों और भावों की स्थिति का भी विश्लेषण करने के साथ-साथ कुछ और गणनाएँ भी की जाती हैं। यह थोड़ा श्रमसाध्य है पर सूक्ष्म स्तर तक पहुँचने में ज्योतिष विज्ञान पूरी सहायता करता है- इसमें किंचितमात्र भी सन्देह नहीं है। आज शिक्षा और व्यवसाय के इतने प्रकार उपस्थित हो गए हैं कि दैवज्ञ के लिए कई बार मुश्किल हो जाता है। इसके लिए प्रश्रकर्ता को दैवज्ञ की परीक्षा लिए जाने की अपेक्षा उन्हें बता देना चाहिए कि जातक की रुचि किन विषयों में है और वह किन-किन व्यवसायों या नौकरी में से किस क्षेत्र में जाने के लिए विचार रखता है। इससे दो लाभ होते हैं- एक, दैवज्ञ को सूक्ष्म स्तर पर पहुँचने की गणनाओं में समय नहीं लगाना पड़ता दूसरा वह सहज ही बता सकेगा कि जातक का भाग्य किस क्षेत्र में प्रबल है। मेरे पास जयपुर के निवासी एक सज्जन आए थे। उनके बेटे की बोर्ड की परीक्षा चल रही थी। कम्प्यूटर ऑन था। उन्होंने सहज ही प्रश्र कर लिया कि बच्चे का परिणाम इन परीक्षाओं में कैसा है? तात्कालिक कुंडली का अध्ययन करके कहा कि बेटे को गणित विषय की तैयारी अच्छे से करने के लिए कहें क्योंकि वही पेपर इसका सबसे कमजोर होगा। कुछ दिनों बाद गणित का ही पेपर था। उन्होंने जवाब दिया - नहीं साहब, यह तो हो ही नहीं सकता। गणित तो उसका प्रिय विषय है और आजतक कभी इसमें मात नहीं खाई है। मेरा उत्तर था – 'जो ग्रहों की स्थितियाँ इंगित कर रही हैं, मैं वही कहूँगा। समझाने में कोई हानि तो है नहीं।" कुछ दिनों उपरांत वे सपत्नी आए और बताया कि बच्चे का गणित का पेपर बिगड़ गया है। आज भी वे सज्जन जयपुर में ही रहते हैं। यह भगवद् कृपा थी जो जातक के जीवन की फाइल को व्यवस्थित करने के सन्दर्भ में आगाह करने के लिए मिली थी। मैंने दैवज्ञ की परीक्षा लिए जाने की बात की है। अत: इस सन्दर्भ में बताना चाहूँगा कि संसार का नियम है -विनम्रता आदमी को बड़ा बना देती है; सन्देह आत्मविश्वास को डिगा देता है और अहंकार उसे नष्ट कर देता है। किसी भी आचार्य के पास जाएँ तो पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से जाएँ ताकि वह आपके जीवन की फाइल को सही रूप में व्यवस्थित कर सके।

श्रद्धा और विश्वास की आवश्यकता

मेरे समक्ष कभी-कभी कुछ अनुत्तरित प्रश्र खड़े हो जाते थे। जो पुस्तकें मेरे पास में थीं उनमें इन प्रश्रों के उत्तर नहीं मिला करते थे। मैं उस समय परमात्मा से उत्तर के लिए प्रार्थना किया करता था। जो लोग मिलने आते थे उनमें से अधिकतर शगुनों-अपशगुनों को मानने वाले होते थे। कोई कहता बिल्ली का रास्ता काटना बुरा शगुन है; कोई कहता किसी काम पर जाते हुए अर्थी का दिखना अच्छा शगुन है; कोई कहता खाली मटका लिए औरत का मिलना अपशगुन है और भरा मटका लिए मिलना शगुन है आदि अनेक बातों पर चर्चा भी हुआ करती थीं। इन सबके बारे में मैंने पढ़ा भी था। बहुत-से दोस्त बिल्ली पालने वाले हैं, गाँवों में तो खाली मटका लिए कुएँ पर जाती बहुत-सी औरतें प्रतिदिन ही दिख जाती हैं फिर क्या सदा ही अहित होता रहता है? इसका उत्तर सपने में मिला कि 'ईश्वर की आपसे संवाद करने की कोई भाषा नहीं है इसलिए वह आपसे उसी भाषा में संवाद करता है जिसे आप समझते हो।' बात भी प्रासंगिक है। कोई किसे शगुन-अपशगुन मानता है तो कोई किसे। जो जैसा मानता है, परमात्मा भी उससे उसी भाषा में संवाद करते हैं। श्री योगेश जी से जब इस बारे में चर्चा हुई तो उन्होंने भी इसी बात की जानकारी दी कि गीता में श्री कृष्ण ने का है कि जो उन्हें जिस रूप में भजता है वह उन्हें उसी रूप में प्राप्त होते हैं। इसलिए दैवज्ञ के पास पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से जाएँ तो जीवन की फाइल को व्यवस्थित करने में परमात्मा की कृपा उसके माध्यम से प्राप्त होगी, इसमें कोई सन्देह नहीं है।

मेरे एक मित्र की लड़की अहमदाबाद में स्थित निरमा के इंस्टीटयूट से एम बी ए का कोर्स करना चाहती थी। गणना के अनुसार दूसरे प्रयास में उसका प्रवेश तय था। पहले प्रयास में प्रवेश नहीं मिला और दूसरे प्रयास में प्रवेश मिल गया। उस दिन उनकी साइट के अनुसार सत्रहवाँ स्थान था पर अगले दिन 17वें से 70वाँ हो गया । यह परिवर्तन जानकर मित्र मुझसे मिले। गणना में पाया कि इस बार प्रवेश अवश्य मिलेगा और इसमें एक विशेष व्यक्ति के माध्यम से सफलता मिलेगी। आश्चर्य यह रहा कि व्यक्ति भी मिले और प्रवेश भी हुआ। यह परमात्मा की ही कृपा का परिणाम ही है कि जीवन की फाइल को व्यवस्थित किया जा सका।

विशेष : उपर्युक्त आलेख में जिन उदाहरणों का संकेत किया गया है वे 100 प्रतिशत सत्य हैं और जिनके साथ हुआ है वे आज भी मुझसे पूरी आत्मीयता से जुड़े हैं । उनके नामों का उल्लेख करना मर्यादा का उल्लंघन होगा इसलिए नहीं किया जा रहा है।

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