आ रस पी:भाग 6


कहीं कहीं  अर्जुन और भगवान कृष्ण को नर नारायण का अवतार बताया गया है, जैसे  महाभारत के वन पर्व   और भीष्मपर्व में l और कहीं पर श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार बताया गया है, जन्म से पहले जेल में भगवान ने चतुर्भुज रूप में माता पिता को दर्शन दिए हैं l और कहीं इन्हें स्वयं भगवान बताया गया है--- 1 /3 /28  भागवत, 7  /7 ,9 /10 , 10 /8 गीता ,38 /23 -24 सभा पर्व महाभारत।  प्रभुपाद जी के अनुसार श्री कृष्ण स्वयं भगवान हैं,  जब भी  अवतार लेते हैं वह सारे अंशो के साथ प्रकट होते हैं l  हनुमान प्रसाद जी पोद्दार के मतानुसार कृष्ण के अवतार में सारे अवतार मत्स्य, नर- नारायण आदि  सम्मिलित  हैंl
सब कुछ श्रीकृष्ण ही हैं कृष्ण के अलावा कुछ भी नहीं है l जिस किसी में भी हम कोई विशेषता  या असाधारणता  देखते है तो यह कृष्ण से ही है, कृष्ण की कृपा का प्रसाद ही है l  कृष्ण की लीला समेटने के पश्चात अर्जुन जिसे विशेष बल कृष्ण द्वारा प्रदान किया गया था(11 /16 /40  ) बलहीन हो गया और  असभ्य ग्वाले   उससे कृष्ण की रानियों को छीन कर ले गए, अपहरण कर लिया और अर्जुन कुछ नहीं कर सका l  इस लीला को श्री  विश्वनाथ चक्रवर्ती ने हमें समझाया है l  विष्णु पुराण और ब्रह्मपुराण का गहन अध्ययन करने के पश्चात वे हमें बताते हैं कि  अष्ट वक्र जो आठ  जगह से टेढ़े थे ने  देव कन्याओं को वरदान दिया कि उन्हें भगवान वर के रूप में मिलेंगे l  जब यह बालाएं उनके  टेढ़े  शरीर के कारण विचित्र चाल को देखकर हंसी तो इन्होंने उन को शाप दे दिया कि तुम्हारा अपहरण हो जाएगा भगवान से दूर हो जाओगी l  बाद में देव कन्याओं ने इन्हें प्रसन्न  कर लिया तो इन्होंने उन्हें आशीर्वाद दिया  कि अपहरण के पश्चात यह भगवान से फिर मिल जाएंगी।  वास्तव में कृष्ण ही अपनी रानियों को ले गए थे  और फिर वह उनके साथ  उनके लोक में चली गईं अंतर्ध्यान हो गए कृष्ण उनकी रानियां l  भक्ति वेदांत ट्रस्ट की भागवतम किताब में ऐसा वर्णन आया है--1/15/20 l कोई कोई विद्वान कृष्ण को असाधारण मानव मानते हैं, कोई इन्हें महान योगी बताते हैंl जो जैसा मानता है उसके लिये कृष्ण वैसे ही बन जाते हैं -- 4/11 गीता भाग. 10/38/22  l  श्री कृष्ण को कभी भी मनुष्य  नहीं समझना चाहिए। ऐसा करने में हमारा भारी नुकसान है। कृष्ण कहते हैं कि जो उन्हें तत्व से जान लेता है उसका दोबारा जन्म नहीं होता, वह कृष्ण को प्राप्त कर लेता है l .हमारा उद्देश्य कृष्णा को जानने का होना चाहिए इसी में कल्याण है l
कृष्ण सबकी आत्मा हैं ;प्रत्येक प्राणी सबसे बढ़कर अपनी आत्मा से प्रेम करता है ,माता-पिता,,पति -पत्नी पुत्र-पुत्री आदि से भी बढ़कर l इसलिए सब व्रजवासी  इनसे प्रेम करते थे --10/14/50-55 l
लीला आरंभ करते समय श्रीकृष्ण ने अपना चतुर्भुज रूप माता-पिता को दिखा दिया था ; लीला समेटने के समय भी  कृष्णा चतुर्भुज रूप में थे l  समस्त देवताओं ने, ब्रह्मा जी, शिव जी आदि ने जन्म से पूर्व भगवान की गर्भ स्तुति की l  इसी प्रकार लीला समाप्त करने के समय भी ब्रहमा जी, शिव जी, प्रजापति गण, सिद्ध ,देवता, नाग आदि दृश्य देखने के लिए उपस्थित थे lसबके देखते देखते ही भगवान धरती छोड़कर सशरीर अपने धाम चले गए l उनके साथ ही उनके आयुध भी चले गए l  और भगवान के पीछे पीछे सत्य, धर्म, धैर्य ,कीर्ति और श्रीदेवी भी चले गए l यह सब भगवान ने अपनी निज शक्ति योग माया से  किया l  इसलिए किस रास्ते से भगवान अपने धाम गए कोई नहीं जान पाया केवल ब्रह्मा जी, शिव जी आदि कुछ को आभास हुआ  कि यह सब भगवान ने अपनी शक्ति माया के द्वारा किया है --- स्कंध 11 के अध्याय 30 और 31  l
श्री कृष्ण की लीलाओं का अनुकरण करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। हां ,जो अग्नि का भक्षण करने में सक्षम हो, अपने मुंह में अनंत कोटी ब्रह्मांड को धारण कर सके,एक ही समय में एक ही स्थान पर करोड़ों रूपों में व्यक्त हो सके उसे अपवाद समझना चाहिए ! कृष्णलीला का रहस्य शांडिल्यजी  ने राजा परीक्षित और  वज्रनाभ को प्रकट किया है कि इसमें तीन  प्रकार के भगवान के भक्त सम्मिलित होते हैं l पहले वह जो इनके नित्य पार्षद हैं; इनके भगवान का कभी वियोग नहीं होता अवतार काल के पश्चात भी नित्य लीला चलती रहती है, ये  हरदम लीला में सम्मिलित रहते हैं l अभी भी धरती पर वृंदावन आदि में जो नित्य लीला चल रही है उनमें नित्य पार्षद भगवान के साथ लीला कर रहे हैं जो कि केवल अधिकारी लोग ही देख सकते हैं, हम जैसे साधारण लोगों नहीं देख सकतेl  दूसरे वह भक्त हैं जो एक मात्र भगवान को पाने की इच्छा रखते हैं; अभी जब 28 में द्वापर में भगवान का अवतार हुआ तब भगवान ने ऐसे भक्तों को प्रेम दान दिया और सदा के लिए अपने नित्य पार्षदों में शामिल कर लिया lयह लोग अब सदा के लिए भगवान के साथ लीला में रहेंगे और इनका भगवान से कभी भी वियोग नहीं होगा l ( हम लोग भी ऐसे भक्त बन सकते हैं,यदि भागवत में अनुशंसित किए गए भगवत्प्राप्ति के मार्गों का आलंबन कर ले l)  तीसरे देवतागण और देवताओं के अंश हैं जो भगवान के साथ ही अवतीर्ण होते हैं; ऐसे भक्तों को भगवान ने पहले ही द्वारिका भेज दिया व्रज  से हटाकरl फिर मूसल को निमित्त बना कर इन्हें मरवा दिया और वापस स्वर्ग में अपनी-अपनी जगह भेज दिया l ऐसे तो यह देवता भी बड़भागी हैं परंतु यह हमेशा के लिए भगवान की नित्य लीला में सम्मिलित तभी हो सकते हैं जबकि भगवान कृपा करके इन्हें मानव शरीर दें और यह मानव शरीर से भगवान की लीला में सम्मिलित होने की अभिलाषा रखते हुए भगवान की भक्ति करें तथा सफल मनोरथ हो जाएंl
अवतार काल में श्रीकृष्ण ने अपने जिस भागवत धर्म का उपदेश उद्धव के माध्यम से हमें दिया है उसकी हमें भगवान को प्राप्त करने हेतु पालना करनी चाहिए l स्वयं भगवान ने इसे सर्वश्रेष्ठ धर्म बनाया बताया है l इस की पालना में कोई त्रुटि होने की संभावना भी भगवान के अनुसार नहीं है l स्वयं भगवान का यह धर्म इस प्रकार है:- 1.सारे कर्म भगवान के लिए करें और कर्म करते समय मन भगवान में रखें l ऐसा करने से धीरे धीरे मन और चित्त भगवान में समर्पित हो जाएंगे l 2.संगत करे संतों की और जिस पवित्र स्थान में संत लोग रहते हैं वहीं  उनके साथ रहे और उनके आचरण का अनुसरण करें l 3.भगवान के पर्व ,उत्सव ,यात्रा आदि ठाट -बाट  से मनाएं  और 4. सब प्राणियों में और अपने अंतःकरण में भगवान को स्थित देखें l सब प्राणियों में भगवान की भावना करने को भगवान ने सर्वश्रेष्ठ बताया है l भगवान ने कहा है कि इस धर्म में कोई विघ्न बाधा से कोई अंतर नहीं पड़ता l भगवान ने यहां तक कह दिया है कि निरर्थक कर्म जैसे कि रोना-पीटना, भागना भय, शोकआदि के अवसर पर होने वाली भावना भी भगवान को प्रसन्न करते हैं यदि वे निष्काम भाव से भगवान को समर्पित कर दिए जाएं l कृष्ण के अनुसार विनाशी शरीर से अविनाशी भगवान को प्राप्त करना चाहिए , उपरोक्त भागवत धर्म पर चलकर--11/29/8-22  l लगभग यही अर्जुन को गीता में समझाया है कि अर्जुन युद्ध भी करे और मन भगवान में रखे (8 /7 ),ज्ञानी ब्राह्मण ,चांडाल,हाथी,गाय कुत्ते में समरूप से परमात्मा को देखने वाले होते हैं (5 /18 ) l गीता का प्रथम शब्द  “धर्म ’’और अंतिममम’’है अर्थात  मेरा धर्म l  ’’ भगवान का धर्म है गीता l


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