प्रारब्ध और भगवत्कृपा


प्रारब्ध और भगवत्कृपा

आसक्ति पूर्वक और फल की इच्छा से करे हुए कर्मों का फल आवश्यक रूप से भोगना पड़ता है या तो इस जन्म में या अगले मानव जन्म में l यह फल अच्छा, जो हमारे अनुकूल है, बुरा, जो हमें कष्टदायक प्रतिकूल प्रतीत होता है  तथा इन दोनों, अच्छे बुरे, का मिश्रण होता है l यह भगवत नियम भगवान ने अर्जुन को गीता में समझाया है और यह सनातन धर्म का एक बहुत बड़ा स्तंभ है ---18/12  l वर्तमान में जो कर्म हम कर रहे हैं वह क्रियमाण कर्म हैं  l वर्तमान से  पूर्व हमने जो कर्मों का संग्रह किया हुआ है इस जन्म में तथा इससे पूर्व अन्य मानव जन्मों में वे संचित कर्म कहलाते हैंl इन कर्मों में से वह कर्म जो विधाता के विधान के अनुसार हमें इस जन्म में भोगने हैं वे  प्रारब्ध  कर्म कहलाते हैं l

प्रारब्ध को आवश्यक रुप से भोगना ही पड़ता है इस से कोई बचाव नहीं है l’’ भविष्य में किस व्यक्ति की जिंदगी में क्या होने वाला है यह भगवान को पता होता है lयह इसलिए है कि भगवान ने पहले से ही तय कर रखा है कि किसके साथ कब क्या होगा l  बहुत से हिंदू संतो का यही मत है l ईसाई धर्म आवागमन के चक्र को तो नहीं मानता परंतु मनुष्य के जीवन  में क्या लिखा है यह सब भगवान की किताब में होता है, इतना तो मानता है-- साम (psalm) 139/16 l कुरान में भी ऐसा जिक्र आता है कि अल्लाह को सब पता है कि किस  इंसान की जिंदगी में धरती पर  कल क्या आफ़त आने वाली  है,यह सब किताब में लिखा हुआ है,अल्लाह ही कर्त्ता है  --कुरान 57:22,जो कुछ भी   होता है अल्लाह की मर्ज़ी से होता है 81:1-29, l अपने समर्थन में  इस विचार धारा के लोग भगवान राम के पिता दशरथ और भगवान कृष्ण के भांजे अभिमन्यु का दृष्टांत  देते हैं l इनका समय आया जब इन्हें शरीर त्यागना पड़ा l  स्वयं अवतार भी इन्हें नहीं बचा पाए lयह मत मानने वाले बताते हैं कि सब कुछ पूर्वनिश्चित है : ईसा के जन्म से बहुत पहले मूसा व् अन्य संतो ने बता दिया था कि मसीहा आएगा जो सूली पर चढ़ाया जायेगा और मर कर पुनः जी उठेगाl  ऐसा ही हुआ … Luke 24 /44 -46 l  हर त्रेता में राम द्वापर में कृष्ण अवतार होता ही है l रावण-वध और महाभारत बार -बार होते हैं --योगवशिष्ठ में काकभुशाँडि कहते हैं l   

भगवान चाहे तो प्रारब्ध को टाल सकते हैं अपनी कृपा करके l’’  यह   दूसरा मत है l अपने समर्थन में कहते हैं कि श्री कृष्ण अपने गुरु पुत्र को यमलोक से वापस ले आए थे और जब लाए तब उन्होंने यमराज से कहा था: “ कर्म बंधन के कारण आपके लोक में मेरे गुरु का पुत्र लाया गया है l  तुम मेरी आज्ञा स्वीकार करो और उसके कर्मो पर ध्यान ना देकर उसे मेरे पास ले आओ l’’---10/45/45 l आगे भागवत में ही श्री कृष्ण अपने और अपने भक्तों के बारे में बताते हैं कि वह अपने भक्तों का धन धीरे धीरे छीन लेते हैं ताकि उनके भक्त धन का आश्रय छोड़ दें और पूर्ण रुप से उनके ही ऊपर आश्रित रहे---10/88/8  l (यह धन उसे प्रारब्ध और पुरुषार्थ से मिला होता है)l धन छीनना प्रारब्ध बदलना है l  इन दोनों दृष्टांतों से तथा मार्कण्डेय( जिनकी मृत्यु टली थी ) के जीवन से  ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान कर्मफल को भी समाप्त करते हैं l यदि यह सच है तो अभिमन्यु और दशरथ जी को क्यों नहीं बचाया?
 प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान  समदर्शी नहीं है, न्याय नहीं करते l कभी तो प्रारब्ध  को टाल देते हैं और कभी नहीं टालते जबकि सब धर्मों ने भगवान को समदर्शी ही बताया है … Acts 10 /34 l   परंतु गहनता से विचार करने से यह सत्य प्रतीत नहीं होता l दशरथ जी की मृत्यु पर विचार करें  l  मृत्यु के समय यह राम को याद कर रहे थे l  बिल्कुल सत्य है l  संतों का मत है यह अपने पुत्र राम को याद कर रहे थे, परम ब्रह्म  सर्वशक्तिमान राम को नहीं l   दूसरे इन्होंने भगवान से मृत्यु से अपने आपको बचाने की प्रार्थना नहीं की l यही बात अभिमन्यु की है, इसने  भी कृष्ण को प्राण बचाने के लिए नहीं पुकारा जबकि  कृष्ण भी उसी कुरुक्षेत्र में रणक्षेत्र में  उपस्थित थे l इसके विपरीत कृष्ण के  गुरु ने कृष्ण से गुरु दक्षिणा में अपने मरे हुए पुत्र को वापस मांगा था l  इसी प्रकार जब  उत्तरा  के गर्भ में परीक्षित को अश्वत्थामा ने मार दिया था ,तब कृष्ण से प्रार्थना की गई कि वह पांडवों के कुल की रक्षा करें,  गर्भ की रक्षा करें l  और प्रार्थना करने पर ही उन्होंने रक्षा की l इसी परीक्षित को  जब तक्षक साँप  डसने रहा था तब  रक्षा के लिए कृष्ण को नहीं पुकारा गया इसलिए वह नहीं आए l ( यह अलग बात है कि राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्त हुई  तथा कृष्ण लीला समेट के  स्वधाम जा चुके थे l )

निष्कर्ष क्या ? यही कि प्रारब्ध भगवान, व् उनके संत,  बदल सकते हैं यदि वे चाहें  और उन्हें आर्त्त  हो कर पुकारा जाए अनन्य  रूप से उन की शरण ग्रहण की जाए ---ध्रुव ,द्रोपदी ,गज आदि उदाहरण हैं l  प्रारब्ध परिवर्तन के लिए प्रबल प्रेम की पुकार आवश्यक है l ऐसा सब ,भगवान अपने भक्तों के लिए ही करते हैं।  दुआएं अल्लाह सुनता है और दुआ से  मुकद्दर बदल सकते हैं, यह कुरान और हदीस  भी हमें बताती हैं --- कुरान 40/60,हदीस 5/667अहमद ;90 इब्न मजाह l ईसाइयों की बाइबिल के अनुसार भगवान सब कुछ करने में समर्थ हैं l ईसा अपनी मृत्यु ताल सकते थे पर उन्होंने ईश्वर के विधान  को स्वीकारा ...... Mattewमैथ्यू 26/53-54,Lukeलुका  22 /42 l
यदि जीवन भर किसी ने भगवान की भक्ति नहीं की, शरण ग्रहण नहीं की; परन्तु आपत्ति  पड़ने पर उन्हें पुकार रहा है तो क्या  भगवान उसकी पुकार सुनेंगे? इसमें संशय  प्रतीत होता है,मानव स्वभाव के अनुसार तो  l परंतु भगवान  हम लोगों जैसे नहीं है हैं l इतने दयालु हैं कि  ऐसे व्यक्तियों की प्रार्थना भी सुनते हैं l गीता में श्रीकृष्ण इस प्रकार के आर्त  भक्तों को भी उदार बताते हैंl   कोई भी परीस्तिथी  हो ,चाहे मृत्यु ही हो भगवान उसे मिटा सकते हैं l  परंतु इसका यह अभिप्राय नहीं है कि आगे जीवन में कोई अनचाही परिस्थिती  नहीं आएगी या मृत्यु नहीं आएगी l  शरीर और संसार नित्य परिवर्तनशील है , अच्छीऔर बुरी  परिस्थितियां तो आएंगी  ही, मृत्यु भी आएगी l परीक्षित ने फिर भी एक दिन शरीर को छोड़ा ही l चीरहरण से तो बच गई परंतु आगे जीवन में द्रोपती ने दुख तो देखे ही lमरे हुए लज़ारस  को जीसस पुनः जीवित कर दिया ,परंतु फिर भी एक  दिन उसकी स्वाभाविक मृत्यु हुई.  जो संत भगवान को प्राप्त कर चुके हैं उन्होंने हमें सीख दी  है कि भगवान से अनित्य वस्तु या परिस्थिति ना मांगे, भगवान से तो उनका प्रेम और भक्ति ही मांगी जाती है l  भक्ति मिलने के बाद तो भगवान भी  हमारी चरण- धूलि के लिए तरसते हैं l यही कारण है कि अभिमन्यु ने युद्ध भूमि में अपनी जीवन रक्षा के लिए मामा कृष्ण को नहीं पुकारा(यहां तक किअर्जुन के आग्रह पर  भगवान कृष्ण द्वारा बुलाए जाने पर पुनः उसी शरीर  में जीवित होना भी अस्वीकार कर दिया l  इस प्रकार अङ्गिरा ऋषि ने चित्रकेतु को प्रारब्ध के विरुद्ध  पुत्र दिया ;परन्तु वह अन्य रानियों द्वारा मार दिया गया l  नारदजी ने जीवात्मा को बुलाया तो उसने चित्रकेतु को पिता मानने से इंकार कर दिया -- 6/16/4-5l) l और सर्पदंश से बचने के लिए राजा  परीक्षित ने भगवान से याचना तक नहीं की ; इसके विपरीत शुकदेव जी से भागवत सुनकर शांतिपूर्वक स्वेच्छा से शरीर त्याग कर आवागमन से अवकाश पाया l गजेंद्र ने जीवन-रक्षा नहीं मांगी ,अज्ञान मिटने की याचना की जो ज्ञान या भगवान की कृपा  से समाप्त होता है, और इसलिए हरि ने उसे सारूप्य  मुक्ति दी --7/3/25  7/4/6  l

निष्कर्ष ?यह  कि भगवान सब समर्थ हैं ,सब पदार्थ देनेवाले ,सब मनोरथ पूर्ण करने वाले--4/13/34, 7/9/54 ,  लिहाजा प्रारब्ध टाल सकते हैं l परन्तु नाशवान वस्तु ,व्यक्ति या परिस्तिथि माँगने से क्या फायदा ? धन क्या मांगना ? एक दिन समाप्त होगा l मृत्यु क्या टालना ? फिर भी आएगी ही l
समझदारी  यह है  कि भगवान से कुछ ना मांगे l  घोर विपत्ती आने पर भी उसे भोगें,  भगवान का प्रसाद समझकर l भगवान से भक्ति मांगे उनका प्रेम मांगे उनका धाम मांगे और हमेशा के लिए जन्म मृत्यु के चक्कर से छुटकारा पाएं l
सबसे उचित सीख हमें यीशु से मिलती है l उन्हें ज्ञात  था कि उन्हें सूली पर चढ़ाया जाएगा l  इसे टालने के लिए उन्होंने प्रभु से प्रार्थना की ; परंतु प्रार्थना में प्रभु से यही कहा ,  “जो आपकी इच्छा हो वैसा हो मेरी इच्छा के अनुसार नहीं    ’’--Lukeलुका  22 /42  l  


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