कामना: यह प्यास कभी नहीं बुझेगी : भाग 1


   
[Epilogue toPrayer] प्रार्थना का पश्च- कथन     

 प्रार्थना{Prayer:Ask and Receive} के प्रसंग में  आरंभ में  ही  निवेदन किया गया था कि सर्वोत्तम यही है कि भगवान से कुछ ना मांगे, सारे कर्म उनकी प्रसन्नता  के लिए ही करें.उदाहरण बृज गोपियों का दिया गया था,’यथा ब्रिज गोपी नाम’--- नारद भक्ति सूत्र. फिर पूर्व लेख में प्रार्थना कैसे की जाए यह बताया गया था. ऐसा भी कहा था कि प्रार्थना का उत्तरोतर  लेख भी  कलमबद्ध किया जाएगा. अस्तुप्रार्थनाके पश्चात यह  सामग्री  प्रस्तुत है. 
हिंदू ग्रंथों --- श्रुति, स्मृति,इतिहास पुराणादि--- में  कामना का वर्णन किया गया है….ऋग्वेद x.129 . बृहदारण्यक उपनिषद हमें बताता है कि मोक्ष के लिए सारी कामनाओं का नाश करना आवश्यक है -- 4/4/7. इस्लाम भी कामनाओं को छोड़ना अच्छा समझता है, ’’देखो मेरे गुलाम ने मेरे लिए कामनाओं का त्याग किया’’---- यह    हादित् अल फरदोस तल्हा से है *=
 . बाइबिल हमें समझाती है,’’ कामना पैदा होती है तो पाप को जन्म देती है पाप जब पूरा पक जाता है  तो मृत्यु लाता है-- जेम्स1/15. सिख संप्रदाय मानता है कि काम हमें ईश्वर से दूर ले जाने वाले पाँच  चोरों में से एक है. महावीर ने काम के लिए घोषणा की है  जितना ज्यादा मिलेगा उतना ज्यादा चाहोगे.. लोभ  बढ़ेगा’’-- उत्तराध्यायन.  बौद्धों ने  कामनाओं को ठीक नहीं माना है और दुख का कारण बताया है.

कामना के संबंध में राजा ययाती देवयानी को समझाते हैं: “यदि किसी मनुष्य को पृथ्वी का सारा वैभव स्वर्ण ,पशु  स्त्रियां सब कुछ प्राप्त हो जाएं  तो भी वह संतुष्ट नहीं हो सकता...वितृष्णा ही दुख का कारण हैभोग  भोगते हुए मुझे हज़ार वर्ष हो गए फिर  भी भोगों के प्रति मेरी लालसा बढ़ती जा रही है... भोगों से आत्म नाश होता है, इनसे अलग रहने वाला आत्मज्ञानी है। ”---9/19/13-20.कामनाओं को छोड़कर ही ययति  भगवत्प्राप्ति कर पाए .

विषय भोग की कामनाओं ने  ऋग्वेदी  सौभरि योगी को भी बहुत परेशान किया .एक बार यमुना जल में डुबकी लगाकर योगी साधना कर रहे थे, उस समय एक  मच्छ  का  गृहस्थी का सुख देख कर यह वैरागी से रागी बन गए . पचास  स्त्रियों(मुचुकुंद की बहनें  मांधाता की पुत्रियां) से विवाह किया, पांच हज़ार  बच्चे पैदा किए।  फिर भी इन्हें सुख नहीं मिला . इनको को बहुत  पश्चाताप हुआ .घर के राजसी ठाठ  त्याग कर वन को चले गए,तपस्या की, समस्त कामनाओं का त्याग किया  और आहवनीय आदि  अग्नियों के साथ ही अपने आप को परमात्मा में लीन कर लिया .  उनकी  पचासों  पत्नियां भी सती होकर उनके प्रभाव से उन्ही में लीन हो गईं , उनकी ही गति प्राप्त की---9/6/39-55.  

  
कामना पैदा होने का कारण भगवान ने उद्धव को समझाया है: “जीव जब  अपने स्वरूप को भूल जाता है तब अपने शरीर में अहम्  बुद्धि कर बैठता है. इससे जीव का मन रजोगुण की ओर झुक जाता है. रजोगुण की ओर झुकने से मन में संकल्प विकल्प का तांता बन जाता है. जीव विषयों का चिंतन करने लगता है. और कामना के फंदे में फंस जाता है.विषयों में आसक्त हो जाता है.  कामनावश  कर्म करने लगता है. और इंद्रियों के वश में हो कर कर्मों को ही करता है क्योंकि वह रजोगुण से मोहित है. ---भागवत 11/13/9-11.इंद्रियां पांच हैं. इनके विषय  भी पांच हैं, जैसे आंखों का विषय देखना, रसना का विषय स्वाद का आनंद लेना,कान का सुहावनी बातें  बातें सुनना,आदि  .सबसे पहले इंद्रियां विषयों का चिंतन करवाती है. विषयों का चिंतन करने से विषयों में आसक्ति पैदा हो जाती है. आसक्ति से कामना पैदा होती है.  काम का अर्थ शारीरिक और मानसिक आनंद से है, इसमें इच्छापूर्ति भी है. विभिन्न भौतिक पदार्थों की इच्छा करना उन्हें पाने के लिए धर्मसंगत अर्जित अर्थ का प्रयोग काम में शामिल है. हिंदुओं की तरह मुसलमान भी काम के पूर्ण दमन में विश्वास नहीं करते. जैसे स्त्री-पुरुष का आपस में आकर्षण है. उसका पूर्ण रूप  से दमन नहीं किया गया है बल्कि शादी के रूप में काम को एक ऐसी दिशा दी गई है जो कि समाज को मान्य है. हिंदुओं में विवाह एक प्रकार से पितृ- ऋण चुकाना है और जन्म जन्म का बंधन है, जबकि इस्लाम में यह एक संविदा है.

   हिंदुओं के जीवन में काम चार पुरुषार्रथों में से एक है, बाकी  धर्म अर्थ और मोक्ष हैं. साधारणत: इन की प्राप्ति को वर्णाश्रम धर्म में उचित ठहराया गया है ,मानव जीवन का लक्ष्य माना है. परंतु ऐसे महर्षि भी है जो कहते हैं कि यह संसार अनित्य है, किसी को प्राप्त नहीं हो सकता. हम आत्मा होने के कारण परमात्मा का अंश हैं . भगवान ही हमारे सजातीय हैं क्योंकि वह हमारी तरह चेतन है.  जड़ संसार से हमारा कोई नाता नहीं. हमने ही  इससे और शरीर से   झूठा रिश्ता बना रखा है.----गीता 13/32 गीता  .   भागवत के रचियता  वेदव्यास ने भागवत के आरंभ में ही,  स्कंध1अध्याय1श्लोक2 , में इन चारों को कैतव  बताया है.और घोषणा की है कि हम इस भागवत ग्रंथ में उन से मुक्त धर्म बता रहे हैं .चैतन्य महाप्रभु ने  तो मोक्ष को पिशाचिनी बताया है. मोक्ष पाने वाला ब्रह्म  में लीन हो जाता है, ब्रह्मानंद तो मिलता है परंतु भगवान की सेवा से सदा के लिए वंचित हो जाता है.इसलिए मोक्ष उनकी दृष्टि में चारों पुरुषाथो  में से सबसे अधिक त्याज्य है. इसलिए सबसे पहले तो मोक्ष पर्यन्त  की कामना का त्याग आवश्यक है. भागवत समझाती  है कि  कामना के आने से इंद्रीय, मन, शरीर, बुद्धि, समझ, सत्य,, शक्ति, लज्जा ,श्री, तेज, प्राण, धर्म और स्मृति  का नाश होता है--- 7 /10 /8 .  भक्ति-प्रधान संत काम में,कामनाओं की पूर्ति में दोष देखते हैं. गीता में कृष्ण ने काम को पाप का कारण और शत्रु बताया है---3/37. गीता में ही आगे चलकर कृष्ण ने 16 वें  अध्याय के 21वें  श्लोक में काम को क्रोध की ही तरह  नर्क का दरवाजा कहा है.

कामना है क्या ? इसकी परिभाषा श्री कृष्ण ने उद्धव को भागवत में दी है.विषयों में कहीं भी गुणों का आरोप  होने से उस वस्तु के प्रति आसक्ति हो जाती है. आसक्ति होने से उसे अपने पास रखने की कामना हो जाती है---श्रीमद् भागवत11 /21 /19 -22 .  कामना का मतलब हुआ किसी विषय को भोगने की इच्छा. इस इच्छा से कोई वस्तु व्यक्ति या परिस्थिति को पाने की लालसा  होती है.लालसा से इच्छा पूर्ति की ओर मनुष्य अग्रसर होता है.कामना पूरी ना हो तो क्रोध को जन्म देती है, पूरी हो जाए तो  लोभ  को जन्म देती है. क्रोध से मूढ भाव आता है जिससे स्मृति भ्रष्ट हो जाती है, विवेक का नाश हो जाता है और इस विवेक के नाश  से मनुष्य का पतन होता है. इस प्रकार पतन   की जड़ कामना ही है. ----गीता  2 /62 ,63 .   क्योंकि काम इंद्रीय ,मन बुद्धि सबसे पर है ,इसलिए कृष्ण अर्जुन को सलाह देते हैं कि वह अपने आपको अपने द्वारा वश में करके काम रुपी  शत्रु को मार डाले.-3/41 गीता .
     
 कामनाओं को कैसे समाप्त किया जाए ? कामनाओं के रहने का स्थान अहं बताया गया है, जो कि मन और बुद्धि से भी ज्यादा बलवान है. आत्मा स्वयं ही काम का नाश कर सकती है अन्य कोई नहीं. स्वामी रामसुखदासजी के अनुसार यह अहं  के जड़ भाग में, चिज्जड़ ग्रन्थि में , रहता है. हम चेतन हैं. जब चेतन अपना संबंध जड़ शरीर और संसार के साथ मान लेता है तब ही  कामना  होती है. जड़ भाग संसार की तरफ खींचता है, चेतन परमात्मा की ओर. संसार से संबंध रखते हुए काम का नाश  संभव नहीं है.काम को मारने का एक ही तरीका है. वह है सारी कामनाओं को छोड़ देना. छोड़ देना तो संभव है. परंतु कामनाओं को पूरा करना असंभव है. कामनाओं को पूरी करने के लिए सोचना ही आग में घी डालने जैसा है, इससे आग और भड़कती है. आग को घी से नहीं बुझाया जाता बल्कि पानी से बुझाया जाता है. इस कारण से कामनाओं को छोड़ना है.ऐसा कभी नहीं सोचना है कि मेरी अमुक कामना पूरी हो जाए तो उसके बाद मैं दूसरी कामना नहीं करूंगा. यह संभव ही नहीं. एक कामना पूरी हुई कि  दूसरी आकर खड़ी हो जाएगी.  इसीलिए कृष्ण ने काम को मारने की अर्जुन को आज्ञा दी है. सांसारिक कामनाओं को छोड़ने का सबसे सुलभ  उपाय है कामना को मोड देना --  भगवान की कामना करना. क्या भगवान की कामना कामना नहीं है? नहीं! कामना उसकी की जाती है जिसका आभाव हो. मेरे पास मकान नहीं है तो मैं मकान की इच्छा कर सकता हूं. भगवान से हमारा नित्य संबंध है इसलिए उनकी कामना कामना नहीं है. यह केवल मात्र उस संबंध को जानना भर  है. दूसरे, एक कामना पूरी होने पर दूसरी कामना आकर खड़ी हो जाती है. परंतु भगवान को जानने के बाद और कुछ कामना ही नहीं रहती.यह इसलिए कि हम  अपनी पूर्णता को जान लेते हैं. हमसे भगवान का संबंध नित्य ही है. इसे अनुभव करना ही भगवान को प्राप्त करना है और स्वरुप को जानना है.यह  कोई नई वस्तु प्राप्त करना नहीं ! 
   
 काम का नाश कैसे करें ? भगवान की शरण में चले जाएं--- गीता18/66 .हर पल मन भगवान में ही लगाएं। श्रवण-से ---- भगवान की बातें सुनकर लीलाएं सुनकर। कीर्तनसे -- ---भगवान के नाम यश लीलाओं का वर्णन करके. सुमिरन-से --- भगवान के रूप , नाम, धाम ,लीला, परीकर आदि  में मन लगाने से. हमें तो बस इतना ही करना है बाकी भगवान करेंगे. उन्होंने हमें विश्वास दिलाया है कि वह हमारे योग  क्षेम की पालना करेंगे---  गीीता  9/22 . लगभग ऐसी ही बात बाइबिल में भी है---- मैथ्यू 6/25-33 .  “ चिंता छोड़ दो कि तुम्हारा जीवन यापन कैसे होगा क्या खाओगे क्या पियोगे क्या पहनोगे---- तुम्हारा पिता चिड़ियों को भी चुग्गा  देता है---वह पेड़ पौधों और चिड़ियों को भी कपड़े देता है. क्या वह  यह सब तुम्हें  नहीं देगा--- कल की चिंता मत करो सबसे पहले भगवान की खोज करो और बाकी सब कुछ  मिल जाएगा----. ’’   कृष्ण ने कहा है कि अगर कोई दुराचारी से भी दुराचारी अनन्य भक्त होकर उनका भजन करता है तो उसको साधु ही मानना चाहिए--- गीता 9/30. बाइबिल में भी  प्रोडीगल सन केआख्यान[parable of the prodigal son] में आता है कि बिगड़ा हुआ  बच्चा जब पिता के  घर लौटता  है तो उसका स्वागत ही किया जाता है, घर से भगाया नहीं जाता. और भक्त का कभी पतन नहीं होता यह भी भगवान गीता में ही नौवें अध्याय के 31वें श्लोक में बताते हैं. ज्ञानी का पतन संभव है--- भागवत में जड़ भरत का पतन. योगी का पतन भी हो सकता है, भागवत में ही सौभरि  योगी के पतन  का वर्णन आता है जो ऊपर बताया गया है. तपस्वी विश्वामित्र का पतन हर कोई जानता है अप्सरा मैनका द्वारा हुआ था. भक्त के पतन का कहीं भी कोई उधारण  नहीं मिलता, पुराणों में. बाइबिल में जीसस(Jesus ) ने भी कहा है कि जो उन  में विश्वास करेगा उसे हरदम के लिए जीवन मिलेगा--- जान6/40 ...(क्रमशः)


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