वेदों में संतान उत्पत्ति प्रक्रिया

छान्दोग्य उपनिषद से:-" गौतम !स्त्री ही अग्नि है। उसका उपस्थित ही समिध् है, पुरुष जो उपमंत्रण करता है वह धूम है, योनि ज्वाला है तथा जो भीतर की ओर करता है, वह अंगारे हैं और उससे जो सुख होता है, वह विस्फुलिंग हैं। उस इस अग्नि में देवगण वीर्य का हवन करते हैं;उस आहुति से गर्भ उत्पन्न होता है।"( ५/८/१-२.)

वृहदारण्यक उपनिषद संतान उत्पन्न करने की प्रक्रिया बताता है।

पुरुष स्वयं को आकाश और पत्नी को धरती मानकर विष्णुर्योनि आदि मंत्रों से प्रार्थना कर गर्भ की स्थापना करता है। " भगवान विष्णु तुम्हारी जनन इंद्रियों को पुत्र उत्पादन में समर्थ करें, त्वष्टा सूर्य रूपों को दर्शन योग्य करें, विराट पुरुष प्रजापति रेत:सेचन करायें,सूत्र आत्मा विधाता तुम में अभिन्न भाव से स्थित होकर गर्भ धारण करें। सिनी वाली नाम की अत्यंत सुंदर देवता तुम में अभेदरूप से एवं पृथुष्टुका का नाम की महान स्तुति शाली देवता भी तुम में है। मैं उनसे प्रार्थना करता हूं कि हे सिनीवाली! हे प्रथुष्टुके! तुम इस गर्भ को धारण करो । दोनों अश्वनी कुमार अथवा चंद्र सूर्य तुम्हारे साथ रहकर इस गर्भ को धारण करें। "

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