कामना: यह प्यास कभी नहीं बुझेगी :भाग 2


जब हमें यह ज्ञान हो जाएगा कि भगवान के अलावा हमारा कोई नहीं है तब हम भगवान की ओर अग्रसर होंगे. भक्त प्रहलाद का कहना है की बचपन से ही भगवत प्राप्ति की ओर लग जाना चाहिए. संसार में मनुष्य-जीवन बहुत दुर्लभ है. इसके द्वारा ही अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है. बुद्धिमान पुरुष को जवानी या बुढ़ापे का  इंतजार नहीं करना चाहिए. बुढ़ापे में कुछ करने की शक्ति नहीं रहती. और फिर सत्य तो यह है कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए परिश्रम नहीं करना पड़ता. … भागवत.7/6/1,7,19 . जरा सोच कर देखो। संसार की कोई वस्तु ,पदार्थ ,व्यक्ति या परिस्थिति सदा के लिए है क्या ? कल जो था आज नहीं है. आज जो है कल नहीं रहेगा. यह शरीर नहीं रहेगा. और क्या शरीर का कोई संबंधी रहेगा? यदि कामनाओं  को त्यागने  का निर्णय आप लेना चाहते हैं तो कृपया ध्यान दें कि  निम्न प्रकार से कामना का नाश किया जा सकता है और भगवत प्राप्ति की जा सकती है ,यह जानकर   मानकर  कि  :-
 1) संसार जड़ है,
 2) हम चेतन हैऔर हम चेतन भगवान के अंश है ---- गीता अध्याय 15 श्लोक 7,   
 3)  भगवान सत- चित- आनंद है’, भगवान का अंश होने के कारण हम स्वभाविक रुप से उन्हें अर्थात आनंद ही चाहते हैं.हम सब सुख के लिए ही कर्म करते हैं,और दुख से निवृत्ति चाहते हैं--7.7.42. जगत गुरुत्तम गोलोक वासी कृपालु जी महाराज का यह मत है : “ प्रत्येक जीव बिना किसी के कुछ भी सिखाएं केवल आनंद की ही खोज कर रहा है. परंतु आनंद का अभी तक लव लेशमात्र नहीं मिला है. कारण हम गलत जगह आनंद  को ढूंढ रहे  हैं।ऐसा भागवत भी कहती है--3. 5.2 .
 4)  संसार में आनंद नहीं है. संसार के किसी भी पदार्थ, व्यक्ति  अथवा परिस्थिति के मिलने से हमें स्वभाविक सुख नहीं मिल सकता  सुख तो अंश को (हमे को ) अपने अंशी(भगवान) में ही मिल सकता है. हमें सुख केवल भगवान से  ही, और किसी  से नहीं,मिल सकता है. अतः संसार में  सुख को ढूंढना ऐसी वस्तु को ढूंढना है  जो वास्तव में है ही नहीं। जिसका अस्तित्व ही नहीं है उसे कैसे पा सकते हैं ?
 5)  यह सुख भगवान से कैसे लें? हमें जब किसी से कुछ लेना होता है तो हम वह वस्तु या तो उससे  छीन कर ले  सकते हैं, या चुरा के, या भिखारी  की तरह, मांग कर. हम इसे चुरा नहीं सकते क्योंकि भगवान सब जगह है और कभी सोते नहीं. हम इसे छीन नहीं सकते क्योंकि भगवान सर्व बलशाली हैं.  बचि  याचना ! हम इसे केवल भगवान से मांग सकते हैं. कैसे मांगे? इसके लिए भगवान की शरण में जाना होगा. भगवान ने हमें अपनी शरण में लेने  का न्योता भी दिया है---- गीता अध्याय 18 श्लोक  66 .ऐसा ही बुलावा ईसा मसीह ने बाइबिल में दिया हैकम टू मी’’
 6) इसके लिए हमें भगवान का भक्त होना होगा. हर समय उन्हें याद रखना होगा, इस तरह हम उन्ही को प्राप्त होंगे. एक अध्यात्मिक नियम है---  हमारा मन बार बार जाता है किसी पदार्थ या प्राणी  में  तो हमें उस ही की प्राप्ति होती है. मन किसी भी प्रकार भगवान में लगाने से, प्यार से, | से, डर से, नातेदारी से,या  कामना से, हमें भगवान की ही प्राप्ति होती है--- नारद जी ने[ भागवत के सातवे स्कंध के प्रथमअध्याय श्लोक 25 से 30 में] युधिष्ठिर को समझाया है, जब शिशुपाल का वध होने के पश्चात एक ज्योति कृष्ण में समाते हुए सबने देखी थी. यही बात फिर आगे चलकर भागवत में अवधूत ने दोहरायी  है कि कीड़ा जो कि भृंगी द्वारा उसके घोसले में बंद कर दिया गया है, डर से और  नफरत से भंगी का ध्यान करता है और ध्यान करते करते स्वयं भृंगि बन जाता है.स्वयं भगवान ने उद्धव को समझाते हुए  बतलाया है कि जो विषयों का चिंतन करता है उसका चित् विषयों में फंस जाता है और जो उनका स्मरण करता है उसका चित् उनमें तल्लीन हो जाता है---11 /14 /27और इस तल्लीनता से ही भगवान की प्राप्ति होती है.  शिशुपाल,  पूतना, रावण आदि ने  बैर से, कंस ने  भय से , पांडवों, उद्धव आदि ने नातेदारी से, नारद आदि ने भक्ति से, कुब्जा और गोपियों ने काम भाव से प्रभु को प्राप्त किया है और आवागमन से छुटकारा पाया है.ऐसा ही हमारे साथ होगा यदि हम भगवान का ही ध्यान करें.आपका मन केवल दो ही स्थानों में जा सकता है---- संसार अथवा भगवान. जब हमें पता लग जाएगा कि संसार हमें कभी मिल ही नहीं सकता, तब हम अपना मन केवल भगवान में ही लगाएंगे. मन ही मोक्ष और बंधन का कारण है,यह जानकर हम मन को वश में कर  के उसे संसार से हटाकर भगवान में ही लगाएंगे. जैसे सुई के साथ धागा जाता है ऐसे ही हम जहां हमारा मन जाता है वहीं चले जाते  है.
7) भगवान में मन लगाने का तरीका यही है कि केवल भगवान को प्राप्त करने की ही कामना रखें.भगवत संबंधी कोई भी कामना बुरी नहीं होती ,अच्छी ही होती है.कुब्जा  की भगवत-संग  की कामना को बुरा नहीं कहा जा सकता. शुकदेव परमहंस ने विषय भोग की कामना को गलत बताया है---श्रीमद् भागवत 10/90/27, 10/87/23 तथा 10/48/9- 11.भगवान के यहां  भाव से कोई अंतर नहीं है, प्राप्ति भगवान की ही होती है. अन्य कोई कामना हो तो उसे भगवत-अर्पण कर दे. मन से हर समय भगवान के संबंध में ही सोचें, उसी की बातें करें, उसी के संबंधित बातें सुने. सारे कार्य ऐसे करें कि  भगवान की पूजा कर रहे हैं, भगवान की खुशी के लिए कर रहे हैं, और सभी कर्म भगवान को अर्पण करें.इससे ना कर्मों में आसक्ति रहेगी, ना फल की इच्छा. कर्म बंधनकारी ना होकर भगवत- प्राप्ति का साधन बन जाएंगे। यही सब बातें भगवान ने गीता में भी कही है---3 /3 0 ,5 /1 0 , 8 /7,8,14 , 9 /2 7,2 8 , 1 8 /4 6,56 ,66 . ऐसी ही बातें बाइबिल में भी हैं, “ मैं और मेरे पिता एक हैं. ...... मेरे  जरिए के बिना मेरे पिता के पास कोई नहीं जा सकता; मैं ही रास्ता हूँ ,मैं ही सत्य हूं मैं ही  जीवन हूं.’’ -- -जॉनअध्याय14 श्लोक 6, 10.

अब भागवत से:   ‘“ जब मनुष्य अपने मन में रहनेवाली कामनाओं का त्याग कर देता है, तब उसी समय मनुष्य भगवत  स्वरुप को  प्राप्त कर लेता है’’  स्कंध7अध्याय10 श्लोक  9. यही बात वेद भी कहते हैं--कठोपनिषद 2.3.14.
 नरसिंह भगवान ने जब प्रह्लाद से वर मांगने को कहा और और बहुत आग्रह किया कि कुछ मांग तब प्रह्लाद ने यह मांगा कि मांगने की कामना ही समाप्त हो जाए.भगवान कृष्ण ने तो यहां तक कह दिया कि यदि विषय भोगने की प्रबल इच्छा हो और भोगे  बिना नहीं रहा जा सके,तो  विषय  भोग लेने चाहिए ;परंतु उन्हें अच्छा नहीं समझना चाहिए. और भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि भगवान उसका भोगों से, विषयों से मन हटा दें , मन-ही-मन भोगों की निंदा करें और  भोग  भोगने को अपना दुर्भाग्य ही समझे. भगवान का निरंतर भजन करें,  पूरी श्रद्धा प्रेमऔर निश्चय के साथ  ऐसा करने से भगवान उसके हृदय में बैठ जाते हैं और उसकी सारी वासनाएं अपने संस्कारों के साथ नष्ट हो जाती है. भक्ति योग में रमा रहे---11/20/27-29 . यदि भक्ति कर रहा हो तो भोग भोगने पर भी भगवान की ही प्राप्ति होती है, यदि ऊपर जो भगवान ने बताया है वैसा ही जीव करें। मुक्ति उपनिषद में रामजी ने भी हनुमानजी को समझाया है कि पापी भी यदि भगवान का नाम जपता है तो उसे सालोक्य  मोक्ष मिल जाती है.
   
 आप भी भगवान से कोई सांसारिक कामना ना  करें , यही कामना करें कि मेरी सारी कामनाएं समाप्त हो जाएं. मैं आपसे आपको ही मांगू और कुछ मांगने की प्रार्थना समाप्त कर दें. वास्तव में भगवत संबंधी कामना कामना नहीं है,यह हमने ऊपर बताया है .  कुब्जा ,यज्ञपत्नियाँ तथा गोपियों   द्वारा  भगवान श्री कृष्ण का अंग संग मांगना निंदनीय नहीं है, क्योंकि यह भगवान से संबंध रखता है .  इसे वंदनीय ही मानना चाहिए . श्री कृष्ण स्वयं ने गोपियों से कहा है,  “ जिन्होंने अपना मन और प्राण मुझे समर्पित कर रखा है उनकी कामनाएं उन्हें सांसारिक भोगों की ओर ले जाने में समर्थ नहीं होती; ठीक वैसे ही जैसे भुने हुए या उबले हुए बीज  फिर अंकुर के रूप में उगने योग्य नहीं रह जाते--10/22/26 .सांसारिक कामनाओं को छोड़ना आसान नहीं हैl  सरल होता कामनाओं को छोड़ना तो हम असंख्य  जन्म लेने के पश्चात भी आज माया के आधीन क्यों होते ?  इसलिए कृपालु जी की  राय को माने. एक तरफ तो संसार से आसक्ति  छोड़ने का प्रयास  करते रहें और साथ ही साथ श्री कृष्ण में आसक्ति करते रहें . हम बता चुके हैं कि आसक्ति से कामना पैदा होती है .जब आसक्ति  हम श्री कृष्ण में करेंगे तो श्री कृष्ण -मिलन की कामना पैदा होगी, यह कामना पूरी होगी तो लोभ  बढ़ेगा, लोभ  बढ़ेगा तो हम और ज्यादा आसक्ति करेंगे श्री कृष्ण में . और यही लोभ  हमें श्रीकृष्ण की प्राप्ति करा देगा . इस कारण से भगवान के संबंधी कामना को वंदनीय बताया है भक्ति के आचार्यों ने .
यही  प्रार्थना  का [ एपी लॉग टो प्रेयर[ epilougue to prayer] उत्तरोत्तर कथन है.  
प्रार्थना के बारे में.  “आप की कामनाएं समाप्त हो और आपको भगवत- प्राप्ति की लगन लगे ,भगवत प्राप्ति की कामना पूरी हो.’’  इसी कामना के साथ।       इतिश्री।

                             पुनिश्चय: 

यदि कामनाओं को  नहीं छोड़ा तो आपको भी भक्त ध्रुव की तरह पछताना पड सकता है. भगवान मिलने के पश्चात भी वासना के कारण उसके हृदय में कुछ मांगने की  इच्छा  थी. ---भागवत 4/9/30-35 .अंत में वह अपनी माता  सुनीति सहित, भगवद्धाम तो गया ,मृत्यु के सिर पर पैर रखकर, परंतु बहुत विलम्ब से -----भागवत4/12/30.  कामना  ने  कैसे ठगा ! जो तत्काल  मिलना था, छत्तीस हज़ार साल ,बाद हाथ आया.
*=  Ibn  Al Sinni from Al Furdous by Talhah.  
=अब  तो  विदित हो गया होगा ‘’कुछ मांगना दूसरी श्रेणी की प्राथना  है, ना मांगना सर्वोच्च ‘’
                   पुनिश्चय दो:
यूं तो समस्त भागवत में ही भगवत प्राप्ति के  साधन बताए गए हैं, निम्न प्रसंग विशेष रूप से मुक्ति के और भगवत प्रेम  के द्वार है : 1/15/51  ,3/32/43  ,3/33/37  ,4/23/39  ,6/13/31-32,  9/5/27,  10/6/44,   10/33/40 , 10/69/45, 10/77/33,  10/81/41,  10/85/59   , 11/31/28…...   पढें अवश्य.
                         पुनश्च :तीन
शरीर निर्वाह की जो कामना है वह ना तो छोड़ी  जा सकती  है और ना ही छोड़नी  चाहिए, जैसे प्यास , भूख; रोटी कपड़ा मकान  की इच्छा।


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