सृष्टि: नीड का निर्माण फिर फिर नेह का आह्वान फिर फिर: भाग 2


आत्यंतिक प्रलय उस  को कहते हैं जब जीव माया/ प्रकृति से संबंध विच्छेद करके अपने आत्म स्वरुप में स्थित हो जाता है.आत्मा की माया से मुक्त वास्तविक स्थिति ही आत्यंतिक  प्रलय  कहलाती है.इस्कॉन के सिद्धांतानुसार : “ जब मनुष्य परमात्मा का अनुभव प्राप्त कर लेता है तो वह भौतिक जगत का आत्यंतिक या  परम प्रलय कहलाता है.”
प्रतिदिन तिनके से लेकर ब्रह्मा तक जीव जन्म ले रहे हैं और मर रहे हैं, यही नित्य प्रलय है.

स्मरण रहे कि  प्रलय भौतिक  जगत का होता है,  ब्रहमा द्वारा  बनाए गए संसार का. भगवान के धाम  नित्य हैं. यह वैकुंठ कहलाते हैं. इनका प्रलय से कोई लेना-देना नहीं. शास्वत होने के कारण ना इन का प्रारंभ है ना अंत. यहां पर प्रभु के भक्त रहते हैं और यहां जाने के बाद दोबारा संसार में जन्म नहीं होता, ऐसा कृष्ण ने गीता में बताया है--15/6. ध्यान देने की बात है कि प्राकृत   प्रलय में हम नष्ट नहीं होते और ना ही हम /जीव के कर्म.संसार की फिर से रचना होने पर हम मायाबद्ध  जीवो को वहीं से प्रारंभ करना पड़ता है जहां प्रलय के समय थे.  जैसे क्रिकेट के खेल में दूसरे दिन उसी स्कोर/ स्थिति से खेल शुरू होता है जो खेल समाप्त होने पर था. यह जगतगुरुतम श्री कृपालु जी समझाते हैं.
वर्तमान  कल्प  श्वेत वाराह कल्प है.प्रत्येक कल्प में 14 मन्वंतर होते हैं. सातवांँ  मन्वंतर चल रहा है. मनु का नाम वैवस्वत है और युग 28वां कलियुग है.  ब्रहमाजी के 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं. यह  उनके 51वें वर्ष का पहला दिन है. पिछले युग में,  द्वापर में, स्वयं भगवान कृष्ण ने अवतार लिया था करीबन 5000 वर्ष पूर्व. यूँ  तो हर  द्वापर में श्री कृष्ण अवतार लेते हैं, परंतु कल्प में एक बार स्वयं भगवान पधारते हैं जिन्हें अवतारी कहा जाता है.ब्रह्मवैवर्त पुराणके प्रकृति खंड 54/74 का  हवाला देते हुए श्री प्रकाशानंद अपनी किताब ट्रू  हिस्ट्री एंड रिलीजन ऑफ इंडिया में पेज पर  455 *लिखते हैं कि हमारे सूर्य की वर्तमान आयु 155.52 ट्रीलियन155.52 trllion वर्ष है.ब्रह्मा के हर 15 साल के पश्चात एक महा प्रलय(प्राकृत नहीं ) होता है जिसमें हमारी धरती और  सूर्य का नवीनीकरण होता है . ब्रह्मा ने अपनी आयु के 50 वर्ष पूर्ण कर लिये हैं ,तीन बार ऐसा नवीनीकरण हो चुका है और इस धरती की शेष आयु 2.348 बिलियन वर्ष है.कुछ विद्वान, जैसे  श्री विश्वनाथ चक्रवर्ती और श्री जीव गोस्वामी का  मत है कि हर  मन्वंतर के पश्चात  जल प्रलय होती है. इसमें सारे प्राणी समाप्त हो जाते हैं, धरती पर  जल ही जल हो जाता है. अन्य  विद्वान श्रीधर स्वामी कहते हैं कि हर मनु के बदलने पर  प्रलय नहीं होती. भागवत से यह बात तो स्पष्ट है कि चाक्षुष मनुके पश्चात एक जल प्रलय अवश्य हुई है. सत्यव्रत/ श्राद्ध देव,आगामी मनु,वैवस्वत मन्वंतर के,को प्रेरणा देकर भगवान/मत्स्य अवतार  ने एक नाव में समस्त प्राणियों के सूक्ष्म शरीर रखवाए हैं, जिन से आगे चलकर सृष्टि चली है...1/3/15.  ऐसा ही वर्णन नोआह Noah के मामले में बाइबिल में है. …Genisis 7-10.अंतर इतना सा ही है कि बाइबिल में समस्त प्राणियों के स्थूल शरीर बचाने का वर्णन है.

हर कल्प में  सारी घटनाएं एक जैसी नहीं होती हैं, यह बात वशिष्ट जी को कौवा काकभुशंडिजी  योग वशिष्ठ में समझाते हैं. “मैंने महाभारत के अलग-अलग अंत देखे हैं, दक्ष यज्ञ को देख देख कर तो मैं उकता गया हूं… ” उदाहरण के तौर पर देवी भागवत ,जोकि सारस्वत कल्प( स्कंध 6अध्याय 31)  की है,  में राजा परीक्षित का मोक्ष नहीं हुआ,  सर्प दंश से  दुर्गति  हुई . उनके पुत्र जन्मजय द्वारा व्यास जी से देवी भागवत सुनने  के पश्चात ही परम धाम मिला …(.तीसरे स्कंध का बारहवां अध्याय देवीभागवत   माहातम्य अध्य.1) श्रीमद्भागवत पदम कल्प की घटनाएं बताती है,(2.10.47)  जिस कल्प में   परीक्षित का मोक्ष हुआ है…. 10.6.10-13. प्रकाशानंद जी का कहना है की अलग अलग मन्वंतर में घटनाओं में थोड़ा बहुत  परिवर्तन सकता है, दर्शन और उपदेश वही रहता है, क्योंकि पुराण शाश्वत है. कभी-कभी लक्ष्मण राम के बड़े भाई भी बन सकते हैं और बलदेव कृष्ण के छोटे भाई. कभी राधा रानी कृष्ण के प्रकट होने के बाद प्रकट होती है और कभी-कभी रासलीला का स्थान थोड़ा सा परिवर्तित हो जाता है, उदाहरण के तौर पर चंद्र सरोवर,गोवर्धन में भी रास लीला हो सकती है.( ट्रू हिस्ट्री एंड रिलिजन ऑफ इंडिया-63)) .
चाहे संसार  में व्यक्त रूप से रहें  ,या अव्यक्त रूप से रहें, संसार में  केवल भगवान ही हैं.  भगवान के अलावा और कुछ नहीं है.  जीव  भगवान का सनातन अंश है. यूं तो भगवान सबके हृदय में हैं और सबके सुहृद  है.  परंतु संसार को सुचारु रुप से चलाने के लिए कुछ जीवों  को विशेष अधिकार देते हैं. मनु और मनु पुत्र संसार में कानून व्यवस्था कायम रखते हैं और धर्म को  रक्षा देते हैं. इनसे ही संसार की वृद्धि होती है. प्रथम मनु और शतरूपा ब्रह्मा  जी के शरीर से निकले. इनसे ही प्रथम बार मैथुनी सृष्टि आरंभ हुई. प्रत्येक मन्वंतर के मनु अलग-अलग होते हैं जो पूरे मन्वंतर तक राज करते हैं.वर्तमान मनु श्राद्देव  हैं जो सातवें मनु है और  वैवस्वत मनु कहलाते हैं. इनके पुत्र हैं  इक्ष्वाकु, नाभाग, वसु मान आदि. २८ वाँ कलि युग चल रहा है .  लुप्त हुए वेदों को वापस स्थापित करने के लिए  प्रत्येक मन्वंतर में पृथक- पृथक सप्तऋषि  भी होते हैं.इस मन्वंतर के सप्तऋषिगण कश्यप, अत्रि ,वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज है. इस सातवें मन्वंतर का इंद्र पुरंदर है और मुख्य देवता आदित्य, वसु, रुद्र, मरुद्गण, विश्वदेव आदि  हैं.  इंद्र आदि देवता स्वर्ग में रहते हैं और यज्ञ में दी जाने वाली  आहूतियां स्वीकार करते हैं.भगवान अपने अंश से  प्रत्येक मन्वंतर में  अवतार लेते हैं. इस मन्वंतर में भगवान ने वामन रूप में अवतार ग्रहण किया है, ऋषि कश्यप की  पत्नी अदिति के गर्भ से.


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