विश्व-व्यापी राम



ले. वात्स्यायन शर्मा
मेयो काॅलेज, अजमेर
www.hindiCBSE.com
भारतीय संस्कृति की महान कृतियों में रामायण व महाभारत अद्वितीय हैं। ये रत्न कितने अनमोल, श्रद्धास्पद हैं इसका सहज अनुमान भारतीय जीवन व मानस को देखकर लगाया जा सकता है। अनगिनत विभिन्नताओं के मध्य भी भारत के प्रत्येक प्रान्त और प्रत्येक भाषा में ‘रामायण’ व ‘महाभारत’ के पात्रों  पर अनगिनत स्थानो व लोगों के नाम सुनने को मिलेंगे। इन ग्रंथों के प्रति क्या यह भारतीय श्रद्धा का प्रमाण नहीं है? वस्तुतः मंदिर थोपे जा सकते हैं; रहन-सहन, सामाजिक आचार-विचार, खान-पान आदि में परिवर्तन लाया जा सकता है। परंतु क्या मनुष्य में आंतरिक तत्त्व जो स्थिर भाव से विद्यमान है, उसे सहज बदला जा सकता है? ‘राम’ उसी आंतरिक तŸव का एक नाम है। रामायण उसी आंतरिक तत्त्व की एक कृति है।

‘राम’ शब्द स्वयं में ही काव्यात्मक है, गहरा अर्थ लिए है। काव्यात्मक इसलिए क्योंकि काव्य विभेद नहीं करता वरन् विभेद को तिरोहित करता है। गहरा इसलिए कि शून्य से प्रारंभ होकर परम तक ले जाता है। डाकू रत्नाकर का वाल्मीकी बनना शून्य से परम तक ले जाने का अनुपम उदाहरण है। जब राम शब्द-मात्र में इतनी गहनता है तो जीवन के आदर्श व मूल्यों को प्रस्तुत करने वाली रामायण का एक-एक शब्द सम्पूर्णता लिए हुए होगा ही। ऐसा नहीं है कि यह सम्पूर्णता सिर्फ रामायण में प्राप्य है या दूसरे शब्दो में, ‘राम’ में मिलती है। इस सम्पूर्णता को छूनेवाले या इस स्तर तक पहुँचानेवाले अनगिनत भारतीय परिवेश में हुए हैं, परन्तु उनमें तुलना नहीं की जा सकती। प्रत्येक की अलग- अलग पहचान है। कृष्ण, कृष्ण हैं ; शिव, शिव हैं; विष्णु, विष्णु हैं ; कोई तुलना नहीं है इनमें आपस में। इसी तरह राम अपने आप में सम्पूर्ण है। इस सम्पूर्णता से परिचित होने का एक ही मार्ग है - उसमें खो जाना। हम रामायण पढ़ लेंगे; एक-एक शब्द पर अधिकार कर लेंगे; एक-एक पंक्ति पर घंटो वाद-विवाद करने के योग्य बन जाएँगे पर इनमें राम नहीं है। राम को जानना है तो बस एक ही मार्ग है और वह है - उसमें खो जाना। इस खो जाने की प्रक्रिया से जो परिचित हो गया वह राम का हो गया। जब वाल्मीकी राम में खो गए तब ‘रामायण’ अस्तित्व में आई और जब तुलसीदासजी राममय हो गए तब ‘रामचरितमानस’ की रचना हुई। आजतक भावनाओं के ज्वार को कौन रोक पाया है अतः ‘रामायण’ व रामचरितमानस’ के रूप मे ज्वार का प्रस्फुटन सहज ही है। यही कारण है कि कभी यह नहीं कहा जाता कि वाल्मीकीजी ने ‘रामायण’ लिखकर या तुलसीदासजी ने ‘रामचरितमानस’ लिखकर राम को अमर बना दिया। वस्तुतः यह राम में खोने का परिणाम है कि ऐसी उत्कृष्ट रचनाएँ हमें प्राप्त हुई जिन्हें भारतीय श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं तो विश्व महान कृति के रूप में।

रामायण में तीन महत्वपूर्ण कथाएँ हैं और उनके नायक राम, हनुमान और रावण हैं। राम को हम वर्तमान में देवता के रूप में, विष्णु अवतार के रूप में देखते हैं तो रावण को असुर के रूप में और वानर को बन्दर के अर्थ में लेते हैं। इसे हम यों कह सकते हैं कि राम की कथा उत्तर भारत के लोगों में प्रचलित रही हो जो आर्य संस्कृति का केन्द्र रहा है;  रावण की कथा दक्षिण भारत की है जो द्रविड़ सभ्यता का केन्द्र रहा है और वानर की कथा जंगल में रहकर जीवन बितानेवाले किष्किंधा प्रदेश के आदिवासियों से संबंधित रही हैं। इन तीन चरित्रों को एक ही कथा में दिखाया जाना धार्मिक समन्वय को दिखाया जाना है । बहुत सम्भव है कि राम सचमुच ही एक महान ऐतिहासिक पुरुष थे और उन्होंने वानर-सेना की सहायता से लंका पर विजय पाई थी। वानर जाति के विषय में एक बात और कही जाती है कि ये लोग प्राचीन विन्ध्य प्रदेश और दक्षिण भारत की आदिवासी जाति जो आर्यों से पूर्व की थीं उसके सदस्य थे; या तो उनके मुख वानरों के समान थे या फिर उनकी ध्वजाओं पर वानरों और भालुओं के निशान रहे होंगे जिससे उनका नाम वानर पड़ गया। राम के काल का विचार करते हुए  डा॰ विनोद शास्त्री (निदेशक, राजस्थान संस्कृत अकादमी) ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि  ‘‘वाल्मीकी रामायण के बालकांड में 18वें अध्याय कें अंतगर्त श्लोक सं. 8 व 9 में राम के जन्मकालीन ग्रहों का वर्णन किया गया है। जिसके अनुसार गणना करने पर पाते हैं कि वैसी नक्षत्र, मास और तिथि और ग्रहों की स्थिति आज से  एक करोड़ 25 लाख 58 हजार 98 वर्ष पहले, 26 मार्च को थी । राम को पैदा हुए इतना समय बीत चुका है। रावण का जन्म राम से 10हजार 998 वर्ष पहले हुआ था। पौराणिक आख्यानों के अनुसार राम का राज्य 11 हजार वर्षोंं तक चला था ।’’ (बाइबिल में भी इस प्रकार के लम्बी उम्र के पात्रों के बारे में बताया गया है | )

भारतीय संस्कृति पर विशेषतः राम और कृष्ण की अमिट छाप है। संगीत, नृत्य, शिल्प, कला, साहित्य आदि प्रत्येक क्षेत्र में इन दोनों से भारतीय जीवन को नई दिशा, नए आयाम मिले हैं। राम व रामायण के पात्रों का उल्लेख हमारे वेदों में, पौराणिक आख्यानों में व प्राचीनतम बौद्ध व जैन ग्रंथों में मिलता है। महाभारत में भी रामकथा के प्रसंग मौजूद हैं। इससे ज्ञात होता है कि रामकथा बहुत पुरानी है । विश्व के प्राचीन सहित्य का अध्ययन करने पर पातें हैं कि राम कथा एक ऐसी कथा रही है जिसने भारतवर्ष के अलावा विश्व की अन्य सभ्यताओं  में भी स्थान पाया है। इनसे सिर्फ भारतीय ही नहीं विदेशी भी प्रभावित हुए हैं।
विश्व की अनगिनत महान भाषाओं में हमें राम से संबन्धित कथाओं, दंत कथाओं का साहित्य व उनका उल्लेख प्राप्त होता है। बर्मा, कम्बोडिया, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका, चीन, जापान,  थाईलैंड, लाओस, फिलीपीन्स आदि देशों में राम को समर्पित प्राचीन व नवीन साहित्य देखने को मिलता है। अनेक देशों में रामकथा से प्रभावित होकर ‘रामायण’ व ‘रामचरितमानस’ का  अनुवाद व राम पर विशेष लेखन का कार्य भी किया गया। श्री होनेन्स हेमन विल्सन , गार्सा द तासी , एफ॰ एस॰ ग्राउस़ , डा॰ लुहजि पियो तैस्सितौरी आदि मनीषी ‘रामायण’, ‘रामचरितमानस’ अर्थात राम कथा से बहुत प्रभावित थे। इन विद्वानों द्वारा किए गए अनुवाद व लेखन कार्य लोकप्रिय व आदर के पात्र हैं। इस क्षेत्र में जर्मनी व रूस में भी  अद् भुत   कार्य हुआ है।

जर्मन भारतीय विद्याविद भारतीय साहित्य व संस्कृति से विशेष रूप से प्रभावित रहे हैं। भारतीय साहित्य व संस्कृति के प्रति उत्कृष्ट स्नेह को देखकर जर्मनी भारतीय विद्या के घर के रूप में विश्व-विख्यात हुआ है। संस्कृत-भाषा, वेद, गीता, महाभारत आदि से सम्बन्धित कार्य  जो जर्मन ने किया है वह अविस्मरणीय है।

‘रामायण’ जर्मनी के मनीषियों के लिए प्रभावशाली कृति रही है। भारतीय दंत-कथाओं के एक ही ग्रंथ में रामायण की कथाएँ संकलित होती रही हैं। रामायण-कथा का भारतीय वि़द्याविद श्रीमन् एडाॅल्फ हाॅल्ट्झ्मॅन रचित  संचयन कार्लश्रूहे से 1841 में प्रकाशित हुआ था। श्रीमन्  हर्मान जेकोबी ने 1893 में ‘रामायण: इतिहास और कथ्य’ नामक ग्रंथ लिखा । वर्ष 1894 में एलेग़्जे़ण्डर बाउमगार्टनेर ने भारतीय राम-साहित्य का वर्णन प्रकाशित किया। जे॰ मॅनराड के ‘रामायणन’ (म्यूनिख, 1897) में अतिविशेष लेखों के अनुवाद देखने को मिलते हैं। श्रीमन् आॅगुस्ट विलहेल्म श्लेगेल ने रामायण का लेटिन में अनुवाद कर प्रकाशित किया। भाषा-वैज्ञानिकों के अनुसार राचरितमानस में लगभग सोलह हजार शब्दों का प्रयोग हुआ है और विश्व की किसी भी भाषा के एक कवि ने इतने शब्दों का प्रयोग नहीं किया है। जर्मन भारत के प्राचीन ग्रंथों की इस शब्द-अराधना से बहुत प्रभावित रहे हैं।

राम के आर्दश चरित्र से प्रभावित होकर रूस के प्रसिद्ध विद्वान श्री अ॰बरान्निकोव ने ‘रामचरितमानस’ का रूसीभाषा में अनुवाद किया।  आपके द्वारा किया गया अनुवाद इस दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है कि अर्थ व भावाभिव्यक्ति की समानता के साथ भारतीय काव्यालंकार व रूप योजना यथावत रखी गई हैं। रूस में रामकथा समय-समय पर मंचित होती रही है। इस दृष्टि से श्रीमती नतावलिया गुसेवा प्रणीत रामायण आधारित नाटक महत्वपूर्ण है। पूर्व में, तिब्बती व खोतानी भाषा में लिखी राम-कथा विशेष-रूप से प्रचारित थी। साईबेरिया व वोल्गा नदी के क्षेत्र में राम की कथा से लोग परिचित थे।

जिस राम ने सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया है वह सिर्फ कपोल-कल्पना मात्र नहीं है। राम के मंदिर, राम के नाम पर स्थानों के नाम और हमारे प्राचीन वेद, पुराण, ब्राह्मण व अरण्यक ग्रंथ में जिसका उल्लेख मिलता है वह सब अनायास होने वाली घटना नहीं है ।
----------------------

No comments:

Post a Comment