Who is destined to be next President

के पी के अनुसार एक ज्योतिष विश्लेषण

राष्ट्रपति पद: किसका भाग्य प्रबल !

वर्तमान राष्ट्रपति महामहिम श्री प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 24 जुलाई 2017 को समाप्त हो रहा है। देश की मुख्य पार्टियाँ बी जे पी और कांग्रेस अपने-अपने मत के अनुसार राष्ट्रपति बनाना चाह रही है। इंडिया टुडे (ऑनलाइन) के अनुसार निम्नलिखित व्यक्ति राष्ट्रपति-पद के लिए प्रत्याशी हो सकते हैं।
1.    श्रीमती द्रोपदी मुर्मु
2.    श्रीमती सुमित्रा महाजन
3.    श्री थावर चन्द गहलोत
4.    श्री जस्टिस पी सथासिवम
5.    श्री एल के अडवानी
6.    श्री मुरली मनोहर जोशी
7.    श्री गोपाल कृष्ण गाँधी
8.    श्री फलि नरिमन
9.    श्री शरद पंवार
10.   श्री शरद यादव
11.   श्री प्रणब मुखर्जी

इन दिए गए नामों के अलावा दो अन्य नाम जो चर्चा में हैं उनको भी मैंने अपने इस ज्योतिषीय विश्लेषण में शामिल किया। वे हैं -

12.   श्री एम वैंकया नायडु
13.   श्रीमती सुषमा स्वराज

राजनीतिक जीवन और राष्ट्रपति-पद दोनों में कुछ अंतर है। देश के सर्वौच्च पद पर आसीन होने के लिए भाग्य भी प्रबल होना चाहिए। अभी तक जो नाम चर्चा में हैं, उनका भाग्य क्या कहता है, यही इस आलेख का विषय है।

सबसे पहले लेते हैं -

1. श्रीमती द्रोपदी मुर्मु 
समय :- 19:05:36   14.06.2017
के पी के अनुसार फलादेश के लिए 1-249 के बीच लिया गया अंक - 219

विश्लेषण:-
(1) लग्न का उपस्वामी सूर्य है जो कि मंगल के मृगशिर नक्षत्र में स्थित है। मंगल 6, 4, 3 और 10 वें भाव का कारक है। - यह स्थिति जीवन में आकस्मिक प्रगति और लाभ को प्रगट करती है।

(2) मुख्य नियम के अनुसार तीसरे भाव का उपनक्षत्र स्वामी चन्द्रमा है और वह भी मंगल के ही नक्षत्र में हैं। मंगल 6, 4, 3 और 10 वें भाव का कारक है। यह स्थिति अच्छी है पर यह मंगल लाभ स्थान का कारक नहीं है अतः नियमानुसार इनके प्रत्याशी बनने में सन्देह है। अभी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए अन्य स्थितियों का विश्लेषण किया जाना शेष है।

(3) 6ठे भाव का उप स्वामी राहु है जो कि केतू के मघा नक्षत्र में स्थित है। केतू 12, 1, 12 भाव का सूचक है। यानि दूसरों से लाभ उठाना या दूसरों पर विजय प्राप्त करने में ग्रह कमजोर हैं।

(4) 11 वें भाव का उपस्वामी मंगल है जो कि राहु (6-7) के नक्षत्र में स्थित है। राहु सिंह में है और सूर्य 4 व 5 का कारक है। यह 3रे भाव का कारक नहीं है इसलिए अपेक्षा पूर्ति नहीं होगी।

फलादेश:-
        आपका भाग्य इस पद हेतु प्रबल नहीं है।
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2. श्रीमती सुमित्रा महाजन 
समय :- 20:14:16;  14.06.2017
के पी के अनुसार फलादेश के लिए 1-249 के बीच लिया गया अंक - 237

विश्लेषण:-
(1) लग्न का उपस्वामी चन्द्र है। चन्द्र धनिष्ठा नक्षत्र में स्थित है। मंगल 5, 4, 2, 9 भाव का कारक है। यानि लग्न की स्थिति ठीक है।

(2) मुख्य नियम के अनुसार तीसरे भाव का उपनक्षत्र स्वामी गुरु है और वह हस्ता नक्षत्र में हैं। चन्द्रमा 11, 5, 4, 9 और 2रे भाव का कारक है। - यह स्थिति नियमानुसार इन्हें प्रत्याशी बनाए जाने में सफलता देती है। अभी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए अन्य स्थितियों का विश्लेषण किया जाना शेष है।

(3) 6ठे भाव का उप स्वामी सूर्य है जो कि मृगशिर नक्षत्र में स्थित है। मंगल 5, 4, 2 और 9 भावों का सूचक है। मंगल यहाँ 4थे भाव यानि 6ठे के लाभ का भी सूचक है और 2 रे भाव का भी सूचक है। स्थिति अच्छी है।

(4) दूसरे मुख्य नियम के अनुसार 11 वें भाव का उपस्वामी शनि वक्री है और मूल नक्षत्र में स्थित है। केतू 4, 11, 2, 12 और 9 का कारक है। केतू राहु के नक्षत्र में स्थित है। राहु सिंह में है और सिंह का स्वामी 3 रे भाव में है। यह तीसरे भाव का कारक है और जैसा ऊपर बताया गया है कि तीसरे भाव का उपस्वामी 11 वें भाव से संबंध रखता है। यानि ग्रहों की यह स्थितियाँ बहुत ही अनुकूल हैं। ग्रह इनकी उम्मीदवारी को निश्चित करते हैं। यानि इन्हें उम्मीदवार बनाया जा सकता है और दोनों ही पार्टियों से मित्रवत संबंधो व स्वयं के सौभाग्यशाली होने का लाभ मिलेगा। अभी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए अन्य स्थितियों का विश्लेषण किया जाना शेष है।

(5) 10 वें भाव का उपस्वामी गुरु है जो कि हस्ता नक्षत्र में है। चन्द्रमा 11, 5, 4, 9, 2 का कारक है।   स्थिति अच्छी है।

(6) दशा का विश्लेषण करने पर पाते हैं कि प्रश्नकाल के अनुसार मंगल (5, 4, 2, 9) की महादशा है। मंगल आद्रा नक्षत्र में है। राहु 11, 5, 3, 6 का कारक है। मंगल बुध (3, 4, 7, 11, 5) के उपभाग में है।
   अन्तर्दशा 18 जुलाई से 6 अगस्त तक राहु की है। राहु स्वयं 11, 5, 3, 6 का कारक है। केतू (11, 12) के नक्षत्र में है ।
   परिणाम आने के समय प्रत्यन्तर्दशा 14 जुलाई से 6 अगस्त तक मंगल (5, 4, 2, 9 )की है। मंगल आद्रा नक्षत्र में है। मंगल बुध (3,4,7,11, 5) के उपभाग में है। जिस समय नामांकन होना है उस समय चन्द्रमा का प्रत्यन्तर होगा। चन्द्रमा मंगल के नक्षत्र में राहु के उपभाग में है।    

(7) महाजन जी के चार्ट में 3रे भाव का उपस्वामी गुरू कन्या में स्थित है और 11वें भाव का उपस्वामी शनि वक्री होकर धनु में स्थित है जो कि इंगित करता है कि सफलता के लिए प्रयास करने होंगे।

फलादेश:- 
भाग्य में उच्च संवैधानिक पद है। इसके लिए भाग्य व मित्रों का साथ भी प्राप्त होगा। राष्ट्रपति पद के लिए इनकी उम्मीदवारी के लिए भाग्य प्रबल है।  

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3. श्री थावर चन्द गहलोत
समय :- 20:32:15; 14.06.2017
के पी के अनुसार फलादेश के लिए 1-249 के बीच लिया गया अंक -99

विश्लेषण:-
(1) लग्न का उपनक्षत्र स्वामी शनि है जो कि वक्री है। प्रश्नचार्ट में यह स्थिति नकारात्मक मानी जाती है। यह केतू (10, 6, 4, 9, 7) का कारक है।

(2) तीसरे भाव का उपनक्षत्र स्वामी मंगल है जो कि राहु (6, 12) के आद्रा नक्षत्र में है। यह स्थिति प्रत्याशी बनने में रूकावट को बताती है।

(3) 6ठे भाव का उपस्वामी सूर्य मृगशिर (मंगल-12, 10, 4, 9,) नक्षत्र में है। यह भी राष्ट्रपति पद के लिए भाग्य सबल नहीं बनाती है।

(4) 11वें भाव का उपस्वामी शनि वक्री है जो कि मूल नक्षत्र (केतू-10, 6, 4, 9, 7) का कारक है। तीसरे भाव से संबंधित नहीं है। यह स्थिति प्रत्याशी बनने में रूकावट को बताती है।

(5)  प्रश्नकाल में दशा मंगल-गुरू-गुरू 21 अगस्त 17 तक है जो कि लाभ देने वाली नहीं है।

फलादेश:-
      इनका भाग्य इस पद के लिए प्रबल नहीं है।

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4. श्री जस्टिस पी सथासिवम
समय :- 18:50:53;   14.06.2017
के पी के अनुसार फलादेश के लिए 1-249 के बीच लिया गया अंक - 182

विश्लेषण :-
(1) प्रथम भाव का उपस्वामी शनि वक्री है। प्रश्नचार्ट में यह स्थिति नकारात्मक मानी जाती है। 
(2) तीसरे भाव का उपस्वामी भी शनि है जो कि वक्री है।

फलादेश :-
     भाग्य प्रबल नहीं है।

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5. श्री एल के अडवानी
समय :- 20:46:36; 14.06.17
के पी के अनुसार फलादेश के लिए 1-249 के बीच लिया गया अंक - 190

विश्लेषण:-
(1) प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी गुरू है जो कि हस्ता नक्षत्र में है। चंद्रमा 1, 7, 6, 4, 11 का कारक है यानि भाग्य प्रबल है।

(2) मुख्य नियम के अनुसार तीसरे भाव का उपनक्षत्र स्वामी गुरु है और वह हस्ता नक्षत्र में हैं। चंद्रमा 1, 7, 6, 4, 11 भाव का कारक है। - यह स्थिति नियमानुसार इन्हें प्रत्याशी बनाए जाने में सफलता देती है। अभी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए अन्य स्थितियों का विश्लेषण किया जाना शेष है।

(3) 6ठे भाव का उप स्वामी चन्द्रमा है जो कि धनिष्ठा नक्षत्र में स्थित है। मंगल 6, 4, 11 और 7, 8 भावों का सूचक है। यह स्थिति भी अच्छी है।

(4) 11 वें भाव का उपस्वामी मंगल है और आद्रा में स्थित है। राहु 1 और 7 का कारक है। यह तीसरे भाव का कारक नहीं है पर जैसा ऊपर बताया गया है कि तीसरे भाव का उपस्वामी 11 वें भाव से संबंध रखता है। यह स्थिति इतनी सकारात्मक नहीं है। अभी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए अन्य स्थितियों का विश्लेषण किया जाना शेष है।

(5) 10 वें भाव का उपस्वामी शुक्र है जो कि भरणी नक्षत्र में है। शुक्र स्वयं 3, 5, 10 का कारक है। यह राहु के उपभाग में है और राहु 1-7 का कारक है। इसमें रिपु और लाभ के भाव शामिल नहीं है। इसलिए इनके 10 वें भाव की स्थिति अच्छी नहीं है।

(6) दशा का विश्लेषण करने पर पाते हैं कि प्रश्नकाल के अनुसार मंगल (6, 4, 11, 7, 8) की महादशा है। मंगल आद्रा में है व राहु 1-7 का कारक है। मंगल बुध (5, 6, 9, 1, 7) के उपभाग में है।
अन्तर्दशा 13 जून 17 से 20 मई 18 तक गुरू की है। गुरू स्वयं 1, 9, 7, 3, 12 का कारक है और चन्द्रमा (6, 1, 4, 11, 7) के नक्षत्र में है और बुध (1, 5, 7, 6, 9) के उपभाग में है।

फलादेश :-
      इस पद के लिए भाग्य प्रबल नहीं है।
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6. श्री मुरली मनोहर जोशी
समय :- 21:1:43; 14.06.2017
के पी के अनुसार फलादेश के लिए 1-249 के बीच लिया गया अंक -241

विश्लेषण :-
(1) 1, 3, 4 और 10 वें भाव का उ न स्वा बुध है जो कि रोहिणी नक्षत्र में है। चन्द्रमा 3, 11, 2, 9, 5 का कारक है। प्रश्नचार्ट में द्विस्वभाव लग्न और उपभाग में बुध की स्थिति को अच्छा नहीं माना जाता है। आपके चार्ट में बुध उपभाग में भी है और बाधकस्थानाधिपति भी है जो कि आगे बढ़ने में रूकावट पैदा करता है।

(2) 6ठे भाव का उ न स्वा गुरू है जो कि हस्ता नक्षत्र में है। चन्द्रमा 11, 5, 3, 2, 9 का कारक है। यह स्थिति भी अच्छी है।

(3) 11वें भाव का उ न स्वा शुक्र है जो कि भरणी में और राहु के उपभाग में है। शुक्र 1, 3, 8 का और राहु 11, 5 का कारक है। राहु सिंह में स्थित है। स्वामी सूर्य 3रे भाव में है। यह स्थिति भी अच्छी है। चन्द्रमा और केतू के मध्य ग्रहण योग लाभ में घटित हो रहा है। यह स्थिति भी अच्छी नहीं है।

(4) महादशा मंगल (5, 3, 2, 9) की 4.12.2022 तक है। यह राहु (11, 5, 3, 6) के नक्षत्र में और बुध (11, 3, 5, 4, 7) के उपभाग में है।
   नामांकन के समय यानि 4 जुलाई 2017 तक गुरू की अन्तर्दशा है। गुरू (11, 7, 5, 1, 10) चन्द्र (3, 11, 2, 9, 5) के नक्षत्र में और बुध (11, 3, 5, 4, 7) के ही उपभाग में है।

(5) चार्ट में 3रे भाव का उपस्वामी बुध बाधक स्थानाधिपति है और वृषभ में स्थित है और 11वें भाव का उपस्वामी शुक्र मेष में स्थित है जो कि इंगित करता है कि सफलता के लिए कड़े प्रयास करने होंगे।

फलादेश :-
श्री जोशी जी का इस पद के लिए भाग्य अच्छा है। नियमानुसार बाधकस्थानाधिपति की स्थिति के कारण आपके स्तर को कम ही आँकना होगा। इसलिए कुल मिलाकर यही कहना उपयुक्त होगा कि श्रेष्ठ स्थिति होने के बावजूद भी किसी न किसी वजह से पीछे रह जाएँगे।
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7. श्री गोपाल कृष्ण गाँधी 
समय :- 21:15:45  14.06.2017
के पी के अनुसार फलादेश के लिए 1-249 के बीच लिया गया अंक -31

विश्लेषण :-
(1) प्रथम भाव का उप न स्वा राहु है जो कि मघा नक्षत्र में है । केतू 2, 10, 7, 12 का कारक है। यानि लग्न की स्थिति सबल नहीं है। इस पर मंगल और गुरू की दृष्टि है।

(2) 3रे भाव का उप न स्वा मंगल है जो कि आद्रा में स्थित है। राहु 10, 4 का कारक है यानि इनके भाग्य में यह वर्तमान पद नहीं है।

(3) 6ठे भाव का उप न स्वा शुक्र है जो कि शुक्र के ही नक्षत्र और राहु के उपभाग में है। शुक्र 12, 1, 6 का कारक है और राहु 10, 4 का। यह स्थिति भी अच्छी नहीं है।

(4) 11 वें भाव का उप न स्वा शुक्र है। इसका संबंध 3रे भाव से नहीं बन रहा है।

फलादेश :-
       भाग्य प्रबल नहीं है।
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8. श्री फली सॅम नरिमन
समय :- 21:20:44       14.06.17
के पी के अनुसार फलादेश के लिए 1-249 के बीच लिया गया अंक - 172

विश्लेषण:-
(1) लग्न का उप न स्वा राहु है जो कि मघा नक्षत्र में है। केतू 3, 7, 1, 5, 6 का कारक है। यह स्थिति इतनी अच्छी नहीं है।

(2) 3रे भाव का उप न स्वा केतू है जो कि धनिष्ठा में स्थित है। मंगल 7, 5, 12, 8 का कारक है। यानि इन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया जाएगा।

(3) 6 ठे भाव का उप न स्वा राहु है जो कि मघा नक्षत्र में है। केतू 3, 7, 1, 5, 6 का कारक है। यह स्थिति भी अच्छी नहीं है।

फलादेश :-
        इनका भाग्य प्रबल नहीं है।

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9. श्री शरद पंवार
समय :- 21:25:46; 14.06.2017
के पी के अनुसार फलादेश के लिए 1-249 के बीच लिया गया अंक -148

विश्लेषण:-
(1) प्रथम और 6ठे का उप नक्षत्र स्वामी राहु है जो मघा में है। केतू 8, 3, 1, 6 का कारक है। लग्न की यह स्थिति पक्ष में नहीं है।

(2)  3रे भाव का उपस्वामी शनि है जो कि गोचर में वक्री है। केतू (8, 3, 1, 6) के नक्षत्र में है। यह स्थिति भी पक्ष में नहीं है।

फलादेश :-
       इनका भाग्य प्रबल नहीं है।

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10. श्री शरद यादव
समय :- 22:16:11; 14.06.2017
के पी के अनुसार फलादेश के लिए 1-249 के बीच लिया गया अंक - 244

विश्लेषण:-
(1) लग्न का उप न स्वा सूर्य मृगशिर नक्षत्र में है। मंगल 5, 11, 3, 2, 9 का कारक है। लग्न की स्थिति ठीक है पर प्रश्नचार्ट में द्विस्वभाव लग्न की स्थिति को अच्छा नहीं माना जाता है।

(2) 3रे भाव का उपस्वामी शुक्र है जो कि भरणी नक्षत्र में राहु के उपभाग में है। शुक्र 1, 3, 8 का कारक है और राहु 3, 6, 5 का । यह स्थिति प्रत्याशी होना प्रकट नहीं करती है।

(3) 6ठे भाव का उप स्वामी बुध रोहिणी नक्षत्र में है। चन्द्रमा 3, 11, 2, 9, 5 में स्थित है। यह स्थिति अच्छी है।

(4) 10वें भाव का उप न स्वा चन्द्रमा धनिष्ठा में स्थित है। मंगल 5, 11, 3, 2, 9 कारक है। यह प्रभाव में वृद्धि को दर्शाता है।

(5) 11 वें भाव का उप न स्वा मंगल आद्रा नक्षत्र में है। राहु 3, 5, 6 का कारक है। यह स्थिति अच्छी है पर चन्द्रमा और केतू के मध्य ग्रहण योग लाभ में घटित हो रहा है।

(6) दशा स्वामी मंगल (5, 11, 3, 2, 9) राहु (3, 5, 6) के नक्षत्र और बाधकस्थानाधिपति बुध (11, 2, 5, 4, 7) के उपभाग में स्थित है।
अन्तर्दशा स्वामी गुरू (11, 6, 5, 1, 10) चन्द्र (3, 11, 2, 9, 5) के नक्षत्र और बाधकस्थानाधिपति बुध (11, 2, 5, 4, 7) के उपभाग में स्थित है।

फलादेश :-
3रे भाव की स्थिति प्रत्याशी होना प्रकट नहीं करती है। लग्न की स्थिति अच्छी नहीं है, इस कारण इस पद के लिए इनका भाग्य प्रबल नहीं है।

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11. श्री प्रणव मुखर्जी
कहीं पढ़ने में आया कि श्री प्रणव मुखर्जी ने अगला कार्यकाल लेने से मना कर दिया है। परन्तु जब आपका नाम भी उस सूची में पढ़ा तो विचार आया क्यों न आपकी भी स्थिति देखी जाए।

समय:- 22:26:20; 14.06.2017
के पी के अनुसार फलादेश के लिए 1-249 के बीच लिया गया अंक -31

विश्लेषण:-
(1) लग्न का उप न स्वा राहु स्थित है केतू (2, 10, 7, 12) के नक्षत्र में। लग्न की यह स्थिति अच्छी नहीं है।

(2) 3रे भाव का उप न स्वा मंगल स्थित है राहु (1, 10, 4, 5) के नक्षत्र में। यह लाभ का परिणाम नहीं देता है। इसलिए सकारात्मक नहीं।

(3) 6ठे भाव का उप न स्वा शुक्र भरणी नक्षत्र में राहु के उपभाग में है। शुक्र (12, 1, 6) और राहु (1, 10, 4, 5) के उप उप भाग में है। यह स्थिति भी अच्छी नहीं है।

(4) 10 वें भाव का उपस्वामी गुरू हस्ता नक्षत्र में स्थित है। चन्द्रमा 2, 10, 7, 12, 3, 4 का कारक है। यह भी स्थिति इतनी लाभ की नहीं है। यह सेवा में परिवर्तन को इंगित करती है।

(5) 11 वें भाव का उपस्वामी शुक्र भरणी नक्षत्र में राहु के उपभाग में है। शुक्र (12, 1, 6) और राहु (1, 10, 4, 5) के उप उप भाग में है। यह 3रे भाव के परिणाम नहीं दे रहा है।

(6) 10 वें भाव में चन्द्रमा केतू के साथ स्थित। 

फलादेश :-
      भाग्य प्रबल नहीं है।
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12. श्री एम वैंकया नायडू
समय :- 22:33:43;   14.06.2017
के पी के अनुसार फलादेश के लिए 1-249 के बीच लिया गया अंक - 115

विश्लेषण:-
(1)  लग्न का उप न स्वा गुरू स्थित है चन्द्र (9, 5, 3, 8, 11) के हस्ता नक्षत्र में । लग्न की यह स्थिति अच्छी है पर द्विस्वभाव लग्न है।

(2) 3रे भाव का उप न स्वा राहु स्थित है केतू (9, 5, 3, 8, 6) मघा नक्षत्र में। गुरू 1, 4, 7 की पाँचवी दृष्टि और मंगल (9, 3, 8) की आठवीं दृष्टि है और चन्द्रमा 5, 11 की युति है। के पी में युति की अपेक्षा दृष्टि का महत्व होता है। इसलिए यहाँ तीसरे भाव की स्थिति अनुकूल नहीं है।

(3)  6ठे भाव का उप न स्वा शुक्र भरणी नक्षत्र में राहु के उपभाग में है। शुक्र (8, 2, 9) और राहु (11, 12, 9) के उप उप भाग में है। यह स्थिति ठीक है।

(4) 10 वें भाव का उपस्वामी बुध रोहिणी नक्षत्र में स्थित है। चन्द्रमा 9, 5, 3, 8, 11 का कारक है। यह स्थिति पद में वृद्धि को इंगित नहीं करती है।

(5) 11 वें भाव का उपस्वामी गुरू चन्द्र के हस्ता नक्षत्र में है। चन्द्रमा 9, 5, 3, 8, 11 का कारक है। यह स्थिति अच्छी है।

(6) महादशा स्वामी मंगल (9, 3, 8) राहु (11, 12, 5, 9) के नक्षत्र और बुध (9, 1, 10) के उपभाग में स्थित है।

   अन्तर्दशा स्वामी गुरू (5, 1, 11, 4, 7) चन्द्र (9, 5, 3, 8, 11) के नक्षत्र और बुध (9, 1, 10) के उपभाग में स्थित है।

   प्रत्यन्तर्दशा स्वामी शुक्र (8, 2, 9) भरणी नक्षत्र में शुक्र के उपभाग और राहु (11, 12, 5, 9) के उप उपभाग में स्थित है।

(7) 9वें भाव का उप न स्वा राहु है जोकि मघा में है। केतू 9, 5, 3, 6 का कारक है। दृष्ट है मंगल (9, 3, 8) से ।

(8) द्विस्वभाव लग्न है और 11 वें भाव का उपस्वामी गुरू कन्या राशि में है। यह स्थिति आसानी से सफलता नहीं देती है। सफल होने के लिए बहुत मेहनत करनी होती है।

फलादेश :-
      नियमानुसार तीसरे भाव की स्थिति अनुकूल नहीं है। लग्न द्विस्वभाव है। महादशा व अन्तर्दशा का संबंध कर्म भाव से नहीं है इसलिए दशा की स्थिति वर्तमान में इन्हें इस पद के लिए लाभ पहुँचानेवाली नहीं है। इसलिए, यही कहा जाएगा कि इनका भाग्य इस पद के लिए प्रबल नहीं है।

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13. श्रीमती सुषमा स्वराज
समय :- 22:48:35
के पी के अनुसार फलादेश के लिए 1-249 के बीच लिया गया अंक - 64

विश्लेषण:-
(1) लग्न का उप न स्वा मंगल स्थित है राहु (8, 2) के आद्रा नक्षत्र में। लग्न की यह स्थिति अच्छी नहीं है।

(2) 3रे और 9वें भाव का उप न स्वा गुरू स्थित है चन्द्र (8, 1, 2) हस्ता नक्षत्र में।  

(3) 6ठे भाव का उप न स्वा केतू धनिष्ठा नक्षत्र में है। मंगल 12, 11, 3, 2 का कारक है। यह स्थिति अच्छी है।

(4) 10 वें भाव का उपस्वामी चन्द्र धनिष्ठा में स्थित है। मंगल 12, 11, 2, 3 का कारक है। यह स्थिति अच्छी है।

(5) 11 वें भाव का उपस्वामी सूर्य मंगल के मृगशिर नक्षत्र में है। मंगल 2, 12, 11, 3 का कारक है। यह स्थिति अच्छी है।  

(6) महादशा स्वामी मंगल (2, 12, 11) राहु (8, 2) के नक्षत्र और बुध (8, 11, 1, 2, 4, 12) के उपभाग में स्थित है।
  अन्तर्दशा स्वामी गुरू (8, 3, 1, 2, 6, 10) चन्द्र (12, 8, 11, 1, 2) के नक्षत्र और बुध (8, 11, 1, 2, 4, 12) के उपभाग में स्थित है।
  प्रत्यन्तर्दशा स्वामी सूर्य (12, 11, 3) मृगशिर मंगल (2, 12, 11) नक्षत्र में और शनि (8, 6, 7, 8, 9) के उपभाग में स्थित है। यह दशा 7.7.17 से 24.7.17 के बीच में है। यानि परिणाम इसी दशा में आएगा।
  नामांकन के समय शुक्र (10, 5) का प्रत्यन्तर होगा। यह भरणी नक्षत्र और शुक्र के उपभाग में व राहु (8, 2, 11, 3) के उप उप भाग में है।

यहाँ यह ध्यान रखना होगा कि इस चार्ट में मंगल बाधकस्थानाधिपति है। साथ ही चन्द्रमा 8वें भाव में केतू के साथ है। यह स्थिति कार्य होने में बाधा प्रकट करती है। दूसरी ओर सूर्य जो कि पार्टी के अधिकारियों का कारक है इंगित करता है, कि वे इनके पूर्ण समर्थन में हैं।

फलादेश :-
लग्न की स्थिति, चन्द्रमा की स्थिति और बाधकस्थानाधिपति की स्थिति रूकावट को बताती हैं। इसलिए यही कहा जाएगा कि इनका भाग्य भी प्रबल नहीं है। 


निष्कर्ष:-
1. इस बार राष्ट्रपति महिला होंगी।

2. जो नाम लिखें गए हैं यदि इनमें से ही चयन होता है तो श्रीमती सुमित्रा महाजन का भाग्य प्रबल है।

3. यह गणनाएँ प्रश्नचार्ट पर आधारित हैं जिसके लिए के पी के नियमानुसार अंक लेकर गणनाएँ की गई हैं। यानि जन्म समय इन गणनाओं का आधार नहीं है।

4. मनुष्य से परम है परमेश्वर। मनुष्य में सदैव ही उसकी रचना को समझने की जिज्ञासा रही है। जिसमें कभी सफल भी होता है तो कभी असफल भी। उपरोक्त गणनाएँ ज्योतिष की के पी पद्धति के साधकों के लाभार्थ की गई है। इसका उद्देश्य किसी भी व्यक्ति के मान-सम्मान या योग्यता को कम आंकना या उसे ठेस पहुँचाना नहीं है।
-इति शुभम

कर्म करना मनुष्य के अधिकार में है फल पर अधिकार नहीं है। - गीता 2.47

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