ब्रह्माजी : भाग 2


ब्रह्माजी सभी प्राणियों के शरीरों की रचना करते हैं. जीवो की रचना यह नहीं करते .जीव अपने कर्म अनुसार प्रलय के बाद अलग-अलग शरीरों में जाते हैं. इन शरीरों के रचयिता ब्रह्मा जी हैं. जीव तो जैसे  पहले भी बताया जा चुका है अनादि है, सनातन है.किस जीव को क्या शरीर मिले इसका निर्णय भगवान करते हैं, ब्रह्मा जी के पास यह शक्तियां नहीं हैं. जैसे ऊपर पहले बताया जा चुका है भगवान समस्त जीवों  को उनके कर्मों के अनुसार, जब तक सृष्टि रहती है, कई बार मानव शरीर देते हैं जिससे कि वे  मुक्ति का प्रयत्न कर सकेँ. 
ब्रह्मा जी की भक्ति करने वालों का क्या होता है ,यह भगवान  कपिल अपनी माता को समझाते हैं. इससे पहले हम उस नियम पर गौर कर लें जो भक्तों की अंतिम गति को बताता है. गीता में कृष्ण ने  स्पष्ट तौर पर समझाया है कि जो जिस की भक्ति करता है, जिसके ध्यान में हर समय रहता है और अंत समय जिसका ध्यान करता है, व्यक्ति उसी को प्राप्त होता है-- 7.23, 9.25,  8.6,8.5, 14.14,15,18 18.12.“ देवताओं की पूजा करने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं,पितरों की पूजा करने वाले पितरों को, भूत-प्रेतों की पूजा करने वाले भूत-प्रेतों को और मेरे भक्त मुझे प्राप्त होते है.”  “ अंत काल में जिस जिस भी भाव का स्मरण करते हुए मनुष्य शरीर छोड़ता है वह उस भाव से सदा भावित होता हुआ उस उस को ही प्राप्त होता है यानी कि उस उस योनि में ही चला जाता है.” उपरोक्त नियम के तहत ब्रह्मा जी की भक्ति करने वाले ब्रह्मा जी के लोक में जाते हैं और ब्रह्मा जी की आयु तक उस लोक में रहते हैं. ब्रह्मा जी की आयु समाप्त होने पर ब्रह्मा जी के भक्त, विरक्त योगीगण , मरीची आदि ऋषि, योगेश्वर, सनकादिक कुमार, युगप्रवर्तक सिद्धगण  सभी  देह त्याग कर ब्रह्माजी में प्रवेश करते हैं और ब्रह्मा जी के साथ परम ब्रह्म में लीन हो जाते हैं.  परंतु पुनः  सृष्टि होने पर भेद  दृष्टि और कर्तव्य अभिमान होने के कारण ब्रह्मा जी   इनके साथ मरीची आदि ऋषि ,योगेश्वर ,सनकादिक, सिद्धगण  पुनः  प्रकट हो जाते हैं. सकाम भक्त ब्रह्मलोक का ऐश्वर्य भोग कर वापस मृत्यु लोक में जाते हैं. ब्रह्मा जी के लोक में योग भ्रष्ट भी रहते हैं--- गीता 6.40-44;और वे लोग भी रहते हैं जिनका ज्ञान पूरी तरह उदय नहीं हुआ है परंतु उनके मन में वैराग है और बीच में मृत्यु हो गई है. ऐसे ज्ञानी लोग देवी भागवत के अनुसार एक कल्प तक ब्रह्माजी के लोक में  रहते हैं और उसके बाद योग भ्रष्टों की तरह श्रीमानो  के घर में जन्म लेते हैं,मृत्यु लोक में, जहां पुराने अभ्यास के कारण पुनः ( भगवत- प्राप्ति) , योग और ज्ञान के मार्ग पर लग जाते हैं--- देवी भागवत 7.37 इस्कॉन Iscon दर्शन में इसको बहुत ही अच्छी प्रकार से समझाया है अपनी पुस्तक श्रीमद्भागवतम् में पेज 671 से  675(3. 32. 10 -15  ): “क्योंकि वे  भगवान के प्रत्यक्ष भक्त नहीं होते, अतः उन्हें सीधे मोक्ष नहीं मिलता-- वह ना तो प्रत्यक्ष मोक्ष प्राप्त करते हैं अथवा भगवत धाम में प्रवेश कर पाते हैं ना ही भगवान के निराकार तेज में लीन हो पाते हैं. ऐसों को पुनः सृष्टि होने पर फिर से जन्म लेना पड़ता है. भले ही कोई विशेष स्वार्थ से भगवान की पूजा करें, किंतु ब्रह्मा जैसे देवता, सनकादिक जैसे ऋषि मुनि तथा मरीचि जैसे महामुनि सृष्टि के समय इस जगत  में  पुनः  लौट आते हैं--- वह अपने निष्काम कर्मों से मुक्त तो हो जाते हैं और पुरुष के प्रथम अवतार( आदि पुरुष) को प्राप्त होते हैं, किंतु सृष्टि के समय वह पुनः अपने पहले के ही रूपों तथा पदों में वापस जाते हैं. यह सभी जानते हैं कि ब्रह्मा को मुक्ति मिलती है, किंतु वे भक्तों को मुक्ति नहीं दिला सकते--- ब्रह्मा, महान ऋषि गण तथा योग के महान स्वामी शिव सामान्य जीव नहीं है, वह सभी अत्यंत शक्तिमान हैं और समस्त योग सिद्धि से पूर्ण है. फिर भी वह परब्रह्म के साथ एकाकार होना चाहते हैं, अतः उन्हें वापस आना पड़ता है--- प्रलय  के बाद ऐसे लोग प्रथम पुरुष अवतार महाविष्णु के पास तक जाकर भी पुनः  इस संसार में वापस आते हैं.--- निर्विशेष वादियों का यह सोचना उनका घोर पतन है कि परमेश्वर भौतिक शरीर से प्रकट होते हैं, अतः परमेश्वर के स्वरूप चिंतन की कोई आवश्यकता नहीं, अपितु निराकार का चिंतन करना चाहिए. इसी भूल के कारण बड़े से बड़े योगी या अध्यात्मवादी भी पुनः सृष्टि होने पर वापस आते हैं--- . “ परंतु यह याद रहे कि ब्रह्मा, मरीचि सनकादिक , योगीगण और सिद्धगण हमारी तरह साधारण और सामान्य बद्ध  जीव नहीं है. यह  अपने पूर्व रूप में ही आते हैं. जबकि हम अपने कर्मों के अनुसार 84 लाख योनियों में घूमते हैं. यह लोग हमेशा के लिए भगवत धाम में नहीं रह पाते.हममें और इनमें एक ही समानता है--- आवागमन से ना हम अभी तक छूटे हैं और ना ही यह छूटे हैं.’’  एक तरह से यह हमसे हीन भी हैं. हम तो कभी ना कभी आवागमन से छूट जाएंगे. यह तो ऐसे ही रहेंगे! ब्रह्माजी का बार-बार प्रकट होना नारदजी भी बताते हैं --1/6/30-31.
ब्रह्मा जी की आराधना सबका स्वामी बनने के लिए की जाती है-- 2.3.6. इन्होंने वेदों को तीन बार मथा और यह निष्कर्ष निकाला कि भक्ति ही श्रेष्ठ है, सर्वश्रेष्ठ है. जब भी धरती पर भार बढ़ता है तब अन्य देवताओं को साथ लेकर यह क्षीर सागर में भगवान से अवतार की प्रार्थना लेकर जाते हैं.जब भी भगवान का अवतार होता है तब यह उनकी स्तुति करने पहुंच जाते हैं शिव अन्य देवताओं के साथ. यहां तक कि  यह कभी-कभी परीक्षा भी ले डालते हैं कि वास्तव में भगवान का अवतार है या नहीं. जैसा कि इन्होंने ग्वालों  और बछड़ों का अपहरण करके किया,कृष्ण अवतार के समय.----10.13,14. ब्रह्मा जी भगवान के सम्बन्ध  में बहुत कुछ जानते हैं. यह हमें भगवान का नियम बताते हैं कि भगवान भक्त के आधीन है, और भगवान उसी रूप में भक्त के सामने प्रकट होते हैं जिस रूप में और जिस भाव से भक्त भगवान का चिंतन करता है और भगवान सबके अंतकरण में रहते हैं ---3.9.11.जो ब्रह्मा जी की पूजा करता है ब्रह्मा जी उसे अपना लोक तक दे सकते हैं, जहां वह  ब्रहमा जी के साथ तब तक रहता है जब तक  ब्रह्माजी स्वयं का अस्तित्व रहता है.हम ऊपर साफ कर चुके हैं, इस नियम को. ब्रह्मा जी के लोक में बहुत ऊंचे भोग हैं,परंतु है अंत वाले.
जैसे हर मन्वंतर में मनु, मनुओं के  वंशज, सप्तरिषि और देवता  बदल जाते हैं, ऐसे ही क्या महाप्रलय होने के पश्चात अर्थात ब्रह्मा  जी की सौ वर्ष की आयु समाप्ति पर पुनः  सृष्टि होने पर क्या ब्रह्मा जी भी बदल जाते हैं? इस तथ्य पर गौर करें कि सृष्टि के  आरंभ में ब्रह्मा जी अपनी पुत्री सरस्वती पर कामासक्त हो गए और संभोग करने पर उद्धत हुए. इसपर मरीची आदि ऋषि ,जो  कि उनके  पुत्र हैं, ने  ब्रह्मा जी को रोका और कहा कि ‘‘आप से पूर्व किसी अन्य ब्रह्मा ने ऐसा कृत्य करने की सोची नहीं.’’-- 3.12.30. इसका एक अर्थ तो यह निकलता है कि वर्तमान में जो ब्रह्मा है उन से पूर्व भी अंय  ब्रह्मा हो चुके हैं,हमारे ब्रह्मांड में. दूसरा अर्थ यह  हो सकता है कि ‘’अन्य ब्रह्मा’’ से अन्य ब्रह्मांडो के  ब्रह्माओँ  का  अभिप्राय है, क्योंकि ब्रह्मांड असंख्य हैं और ब्रह्मा भी हर ब्रह्मांड में  होने के कारण असंख्य है.  हम इस तथ्य पर गौर करें कि  प्रलय के समय अपना शरीर छोड़ कर ब्रह्माजी परम ब्रह्म में लीन हो जाते हैं और जब पुनः  सृष्टि होती है तब वे भेद दृष्टि और कर्तव्य अभिमान के कारण  पहले जैसे ही फिर  प्रकट हो जाते हैं. यह बात कपिल भगवान ने अपनी माता को समझाई  है...3.32.10-15. इस प्रकार दूसरा अर्थ ज्यादा सही प्रतीत होता है.एक ही ब्रह्मा बार-बार आते हैं. प्रथम अर्थ तो तब सही होता जब ब्रह्मा जी परम ब्रह्म में  लीन होने के पश्चात भगवान के परम धाम में ही रहते और वापस पहले की तरह ब्रह्मा के पद पर  प्रकट नहीं होते.नारदजी के कथन से भी एक ही ब्रह्मा का बार-बार प्रकट होना प्रतीत होता है .नारदजी ब्रह्मा में प्रवेश करते है और ब्रह्मा भगवान में , प्रलय के समय . एक हज़ार चतुर्युगी पश्चात जब ब्रह्मा,नारायण के नाभि-कमल से प्रकट हो , सृष्टि की इच्छा करते है उस  समय ब्रह्मा की इन्द्रियों से  नारदजी मरीचि आदि अन्य ऋषि पुनः प्रकट होते हैं  ---1/6/30-31 . 
                                                  pauranik bharat

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