Hindi months : Name and Reason

हिन्दी महीनों के नाम का रहस्य और चन्द्र व सूर्य का पथ-भ्रमण

लेखक :
वात्स्यायन शर्मा
मेयो कॉलेज, अजमेर


अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तरषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद, और रेवती ये 27 नक्षत्र हैं। ये आकाश में पृथ्वी से दूर स्थित तारों का गुच्छ (समूह) हैं जो कि पृथ्वी से देखा जा सकता है। इन तारों के समूह को चन्द्रमा का भ्रमणपथ कहा गया है। भारतीय पंचाग (कलैंडर) में इन नक्षत्रों का बहुत महत्त्व है। सात ग्रह सूर्य, मंगल, गुरू, शनि, शुक्र, बुध, चन्द्रमा एवं दो छाया ग्रह राहु, केतू यानि इन नौ ग्रहों के अधिकार में एक निश्चित क्रम से एक-एक नक्षत्र दिया गया है। प्रत्येक नक्षत्र का मान 13° 20’ कला का होता है यानि मिनटों में कहें तो 792 मिनिट का होता है।
नक्षत्र का क्रम इस क्रम इस प्रकार है -


अश्विनी (Ashvinī)  
भरणी (Bharanī)     
कृत्तिका( Krittikā)   
रोहिणी (Rohinī)   
मॄगशिरा (Mrigashīrsha)  
आर्द्रा (Ārdrā)
पुनर्वसु (Punarvasu)
पुष्य (Pushya)
आश्लेषा  (Āshleshā)       
मघा (Maghā)
पूर्वाफाल्गुनी (Pūrva Phalgunī)
उत्तराफाल्गुनी (Uttara Phalgunī)
हस्त (Hasta)
चित्रा (Chitrā)
स्वाती (Svātī)
विशाखा (Vishākhā)        
अनुराधा (Anurādhā)
ज्येष्ठा (Jyeshtha)
मूल (Mūla)
पूर्वाषाढा (Pūrva Ashādhā)        
उत्तराषाढा (Uttara Ashādhā)
श्रवण (Shravana)
धनिष्ठा (Dhanishthā)
शतभिषा (Shatabhishaj)
पूर्वभाद्र्पद (Pūrva Bhādrapadā)
उत्तरभाद्रपदा (Uttara Bhādrapadā)
रेवती (Revatī)
हिन्दू पंचाग में महीनों के नाम और उनका क्रम व ऋतुएँ इस प्रकार हैं -

चैत्र     - पहला मास है। वसंत ऋतु का महीना है।  
वैशाख   - दूसरा मास है।वसंत ऋतु का महीना है।  
ज्येष्ठ - तीसरा मास है। ग्रीष्म ऋतु का महीना है।  
आषाढ़ - चौथा मास है। ग्रीष्म ऋतु का महीना है।  
श्रावण   - पांचवाँ मास है। वर्षा ऋतु का महीना है।  
भाद्रपद - छठा मास है। वर्षा ऋतु का महीना है।
आश्विन - सातवाँ मास है। कुआँर का महीना भी कहलाता है। शरद ऋतु का महीना है।
कार्तिक - आठवाँ मास है। शरद ऋतु का महीना है ।
मार्गशीर्ष - नवाँ मास है। इसके अगहन, अग्रहायण एवं मंगसर नाम भी प्रचलित है। हेमंत ऋतु का महीना है।
पौष - दसवाँ मास है। हेमंत ऋतु का महीना है।
माघ  - ग्यारहवाँ मास है। शिशिर ऋतु का महीना है।
फाल्गुन - बारहवाँ मास है। हिन्दू पंचाग का अंतिम महीना है। शिशिर ऋतु का महीना है।
हम जानते हैं कि 15 दिन के समूह को पक्ष कहा जाता है। चन्द्रमा के नहीं दिखने का पक्ष कृष्ण व दिखने का पक्ष शुक्ल कहा गया है। चन्द्रमा इन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है।

मास के नाम का रहस्य

जिस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है या जिस नक्षत्र के समीप होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है। जैसे चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास (मार्च-अप्रैल), विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई), ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास (मई-जून), आषाढ़ नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई), श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास (जुलाई-अगस्त), भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद मास (अगस्त-सितम्बर), अश्विनी नक्षत्र के नाम पर आश्विन मास (सितम्बर-अक्टूबर), कृत्तिका नक्षत्र के नाम पर कार्तिक मास (अक्टूबर-नवम्बर), मृगशीर्ष नक्षत्र के नाम पर मार्गशीर्ष मास (नवम्बर-दिसम्बर), पुष्य नक्षत्र के नाम पर पौष मास (दिसम्बर-जनवरी), मघा नक्षत्र के नाम पर माघ मास (जनवरी-फरवरी) तथा फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) का नामकरण हुआ है। यह नक्षत्र उन दिनों बहुधा रात्रि के आरम्भ से अन्त तक दिखाई देता है ।
यजुर्वेद काल में भारतीयों ने मासों के 12 नाम मधु, माधव, शुक्र, शुचि, नमस्, नमस्य, इश, ऊर्ज, सहस्र, तपस् तथा तपस्य रखे थे। बाद में नक्षत्र पर चंद्रमा के होने के आधार पर चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन हो गए।


आकाश में राशियों और उनमें नक्षत्रों की स्थिति

सूर्य का भ्रमण-पथ

चंद्रमा के भ्रमण-पथ के विभाजन के तरह सूर्य के भ्रमण-पथ का भी विभाजन किया गया। सूर्य के भ्रमण-पथ के आधार पर भी 12 माह बने जिसका प्रारंभ 1 जनवरी से माना गया है। सूर्य के भ्रमण-पथ को हम राशि कहेंगे। ये बारह हैं - 1.मेष, 2. वृषभ, 3.मिथुन, 4.कर्क, 5.सिंह, 6.कन्या, 7.तुला, 8. वृश्चिक, 9. धनु 10. मकर, 11. कुंभ और 12. मीन। जैसे चन्द्र का भ्रमण-पथ न नक्षत्रों से है वैसे ही सूर्य का भ्रमण-पथ राशियों से हैं। प्रत्येक नक्षत्र का समय 13°20’ है और प्रत्येक नक्षत्र के चार भाग यानि चार चरण है जिसके अनुसार प्रत्येक चरण 3° 20’ का होता है। पृथ्वी का गोल घेरा 360° (डिग्री) का है इसलिए समान विभाजन करने पर 30°- 30°  के 12 हिस्से हुए। इन 12 हिस्सों को राशियाँ कहा गया। चन्द्र के भ्रमण-पथ के नक्षत्र 27 हैं-  इसलिए 30°- 30° की 12 राशियों में से एक-एक राशि के साथ नक्षत्र का विचार करने पर पाते हैं कि एक राशि में 13°20’ के दो नक्षत्र व तीसरे नक्षत्र का 3° 20’ का हिस्सा आता है। जैसे मेश राशि में अश्विनी नक्षत्र के 13°20’ व भरणी के 13° 20’ और कृतिका नक्षत्र के 3° 20 कुल मिलाकर 30° की एक राशि हुई। मेष के बाद वृषभ राशि है जिसमें कृतिका के 13° 20’ में से 3° 20’ मेष में चले जाने के बाद बचे 10° तथा रोहिणी के 13° 20’ और इसी क्रम में मृगशिर के 6° 40’ मिलाकर इसके 30° पूरे होते हैं। इसी प्रकार प्रत्येक राशि में आगे गणना करते चलेंगे तो पृथ्वी का 360 अंश का घेरा पूरा हो जाता है।

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